Monday, 30 November 2015
Saturday, 28 November 2015
Friday, 27 November 2015
Wednesday, 25 November 2015
Friday, 20 November 2015
एक मुकम्मल वतन का ख्वाब(2)
अवश्य पढ़ें- भाग - 1
हर युवा अपने लिए मुकम्मल वतन, आदर्श देश के ख्वाब देखता है। एक ऐसा देश, जहां उसके लिए अवसर हो और उसकी प्रतिभा को पहचाना जाए। एक ऐसा देश, जहां वह अपनी एक जगह, एक पहचान बना पाए।एक ऐसा वतन, जहां सुकून हो, अभिव्यक्ति और अपने हिसाब से जीने की आजादी हो। वह देश के बदलते राजनीतिक दृश्य को मूकदर्शक की तरह न देखें, बल्कि उसमें एक नागरिक की तरह हस्तक्षेप कर सके।
मगर दुर्भाग्य से 'भारत' ऐसा आदर्श वतन अभी नहीं बन सका है।
आज देश में भ्रष्टाचार, आतंकवाद और सांप्रदायिकता इतनी बढ़ चुकी है कि इसके महान अतीत-वृक्ष की जड़ें भी शायद अब हिलाने लगी हो।
भारत ने जितना भी विकास किया है वो बहुत ही असमान, असंगत, असमतल किस्म का है। बड़े राज्य, बड़े शहर विकसित हुए तो अमेरिका या सिगांपुर की होड़ करने लगे, गांव वहीं साठ के दशक पर अटक गये। मोबाइल क्रांति आ गईगांवो में। गांव में कोक और पेप्सी आ गए, मगर गांव तो गांव शहरों में भी साफ पीने का पानी नहीं आता। लड़कियों को पढ़ने की आज़ादी मिली, मगर उनके प्रति अपराध बढ़ गए।
हम कब, कहां, कैसे इस असमान और असंगत विकास के शिकार हुए, उस बिंदु का पता लगाना मुश्किल है।
देश की सबसे बड़ी ताकत उसका अपार मानव संसाधन है। यह संसाधन अपने आप में भारत का सकारात्मक पक्ष है। भारत के हर हिस्से में अगर समान रूप से विकास की लहर पहुंचे तो, गांव के लोग महानगरों की तरफ न भागें। शिक्षा की सुविधा हर जगह एक-सी हो, ताकि देश का हर नागरिक सक्षम हो सके। जिस रोज यह मानव संसाधन शत-प्रतिशत सक्षम और शिक्षित होगा, भारत को महाशक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता।
मुझे अपने सपनों के भारत में और इस भारत के लोगों में एक कमी सदा दिखती है... हम अनुशासन नहीं सीख सके, दूसरों को धकिया कर खुद आगे भागते हैं। जरूरत से ज्यादा छीन लेने की प्रवृति, सरकारी सुविधाओं के प्रति बेमानी भाव ही है, जो हमारे देश को खूबसूरत नहीं रहने देता। हम अपनी रेलों, बसों और सड़कों, स्टेशनों को लगातार गंदा करते जाते हैं।विश्व प्रसिद्ध रहे हमारे पर्यटन स्थल अपना आकर्षण खो रहे हैं। पीकदान और कचरापात्र की जरूरत महसूस करते ही नहीं और हर दिवार या आहाते टॉयलेट बने हुए हैं।
हम अपना सिविल सेंस लगातार खो रहे हैं।
मुझे धार्मिक तौर पर सहिष्णु और आस्था को अपने घर के मंदिर के कोने तक सीमित रखने वाला भारतीय समाज चाहिए। जहां आस्थाएं निजी हों, वे बाजारों या सार्वजनिक स्थलों तक न पहुंचे।
क्या ये समझने की जरूरत नहीं है कि आखिर हम अपनी आस्थाओं का इतना शोर क्यों मचाते हैं?
हम भारतवासी मिलकर पूरी दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातंत्र बनाते हैं, फिर भी कितनी अजीब बात है कि भारत का आम वोटर राजनीति से विमुख रहता है। वह शुतुरमुर्ग बन नेताओं को गाली देता है, मगर वोट देते समय विवेक की जगह जाति, वर्ग और पैसे से प्रभावित होता है। साफ महसूस कर सकती हूं कि हमारी राजनीति अब नैतिकता और समाजोन्मुख नहीं रही। यह वोट-बैंक और जाति-वर्ग के बल पर चलती है।
युवाओं की दखलंदाजी राजनीति में बस उतनी ही है, जितनी हो सकती थी, यानी कुछ युवा नेताओं को यह सौभाग्य मिलता है, जिनके माता-पिता राजनीति में हो।
यूरोप के अधिकाशं। देशों में 'ग्लोबल'होने के साथ-साथ संस्कृति और प्रकृति दोनों को सहेजा है। मैं ऐसे भारत का सपना देखती हूं जो संस्कृति-आधुनिकता का संगम हो।जहां कोई भूखा न सोए, जहां बच्चे काम के बजाए शिक्षा के लिए जाएं, जहां हर इंसान सुरक्षित महसूस कर सके।
सपनों के भारत का बखान कर लेने से तो ऐसा देश नहीं बनेगा, हमें अपने हाथों से इसे वह रूप देना होगा। हमें अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना होगा, हमें सहनशील बनना होगा।
हमें बहुत गहरी संस्कृति और मानवता की जड़ें मिली हैं, इन्हें हम सींचेंगे तभी विकास की नई शाखाएं निकलेगी। भारत का आदर्श और स्वप्निल स्वरूप हमें ही सृजित करना है।
ऐसे में अल्बर्ट आंइस्टाइन की ये पंक्तियां मुझे हमेशा 'आदर्श' को परिभाषित करने की प्रेरणा देती हैं- 'आदर्श सपना होता है, इसे सत्य में बदलने के लिए कर्तव्य व कर्म जरूरी है। जो आदर्श हमेशा मेरे सामने रहे हैं और जिन्होंने मुझे जीवन के आनंद से लबरेज किया है, वे हैं-अच्छाई-सुदंरता और सत्य'।
Wednesday, 18 November 2015
नये सपनों का भारत (1)
आज जो भारत हमारे सामने है। इस भारत के कई सपने हैं। कुछ राजनीति की जमीन से उगते हैं तो कुछ समाज के उर्वर प्रदेशों से। कुछ सपने उन आंखों के है, जिन्होंने अतीत देखा है, तो कुछ उनके जिनकी निगाहों में युवा रंग झिलमिलाते हैं। इस एक भारत में बहुत सारे भारत है।और जितने भारत हैं, उतने सपने। इन सपनों का कोई एक रंग नहीं है, हो भी नहीं सकता। पर सपनों से जो आकृति बनती है, उसे तो एक ही होना होगा। इन भांति-भांति के सपनों को मिलकर एक रूप लेना होगा। यही इस भारत की सबसे बड़ी चुनौती है।
...एक भारत यह सपना देखता है कि उसके उजाड़ बंजर पड़े खेतों में बादल घिर आएं, बूंदे बरसे और फसल उगे, दूसरा भारत प्रगति के नए शिखरों को स्वप्न में पास आता महसूस करता है। एक अन्य भारत अपने सपनों को सदियों पुरानी रूढ़ियों के वजन तले दबता देखता है, एक भारत प्राचीन के गौरव को फिर से लौटा लाना चाहता है... अंतहीन हैं भारत के स्वप्न...
...बहुत से सपने गलत भी हैं, बहुत से नाकाफी। कुछ सपने बेबुनियादी और कुछ बेबस...भारत सपनों की देहरी पर खड़ा है... वह कुछ पुराने सपने भूल गया है और कुछ पराये सपनों की गुंजलके भी उसे घेरे हैं।
एक भविष्य उसके सामने है, पर विगत से वह किस भाषा में बात करे,यह वह सीख नहीं पाया है।
यह भारत जो सभ्यता का पालना रहा, उसकी करोड़ों संतानें, भूखी-बिमार-फटेहाल पशुओं से भी बदतर जीवन जीती हैं...
हमें एक समद्ध-सशक्त भारत के साथ, एक अखंड भारत का स्वप्न भी देखना है... सचमुच विचित्र हैं भारत के सपने...
गंगा के मैदानों से लेकर ब्रह्मपुत्र की वादियों तक एक देश सदियों से बनाने की कोशिश कर रहा है।
असंख्य जातियां, समूह, लोग और उनका जीवन जैसे किसी इतिहास की प्रतिक्षा में है। अभी भारत के इस स्वप्न को भाषा नहीं मिली है, कि यह खुद को अभिव्यक्त कर सकें... सतह पर जो दिखता है, गहरायों में उसके रंग और आयाम सब बदलते जाते है।
भारत की सतह पर एक चमक दिखती है, पर भीतर यथार्थ शायद इतना चमकिला नहीं है।भारत की सतह पर भ्रष्ट व्यवस्था और एक उदास राष्ट्रीय जन-जीवन दिखता है, पर यहां भी तह में कुछ और सच्चाइयां जागती मिलेगी। ये सच्चाइयां जनता की आशा, विश्वास और एक महाजाति के अपराजित जीवन को भीतर ही भीतर कोई रूप दे रही हैं।
भारत हारने के लिए नहीं है, इतिहास की यह आश्वस्ति उसके पास है। पर भारत वह होने के लिए भी नहीं है, जो आज वह है।संसार का कोई भी भू-भाग ऐसा नहीं है, जहां पृथ्वी की प्रत्येक मानव नस्ल समाहित हो ,इस कदर एकरूप हुई हो, न ही कोई ऐसा भू-भाग है, जो ज्ञान के इतने सारे रूपों को हजारों साल से रचता रहा हो।
और ऐसा भू-भाग नहीं है, जो अपने आत्म को ही भूल गया हो, या फिर उसकी गलत व्याख्याएं कर आत्ममुग्धता की विस्मृति में खोता गया हो।
आजादी के बाद भारत ने एक महान स्वप्न देखा था-उस सपने की परवाज़ बड़ी थी। हमारे आज के अनगिनत छोटे-छोटे सपने मिलकर जिस दिन फिर से एक बड़े स्वप्न में बदलेंगे, उस दिन से एक नया भारत जन्मेगा।हम फिर नए सपनों का भारत बनाना चाहते हैं तो आज फिर से हमें ज्ञान की ऐसी परंपरा का विकास करना होगा, जिसकी जड़ें अपनी धरती में हों, जो हमारे विचार, व्यवहार और समस्त जीवन में लोकतांत्रिक चेतना को विकसित करे और ऐसा माहौल बनाए हर तरफ, जिससे सच्ची मानवीय स्वतंत्रता की आकांक्षाएं फिर से पनप सकें।
नये सपनों का भारत एक नये आकाश, एक नई जमीन और कुछ नये मौसमों के इंतजार में है और उन्हें अपने ही भीतर कहीं रच भी रहा है...ये मेरा और आपका भारत है।
Sunday, 15 November 2015
An award that inspires us
It has not been too long since I started writing. In the time being I have been on this blog, I have posted poems and articles, trying to adapt different forms of writing. And as it seem, my hard work have started paying off. I have been nominated in the Lebister Awards, by a very talented writer and a very active blogger Sunaina Bhatia.
Thank you so much for nominating me Sunaina.. :) To see this nomination and my name among such brilliant writers, I'm now sure that I am writing something that is worth reading.
Here are my answers to the questions :-
1)Which of your blog post is closest to your heart?
= Every single post, it is difficult to choose one. But if I have to choose one then it would be, http://athinkingthinker.blogspot.in/2015/09/blog-post_29.html?m=1
2)Who is your biggest critic?
= My daughter
3)What is happiness?
= Kids jumping around, lots of chocolates, rain and books.
4)Which is the most inspiring thing you have read recently?
= Khalil Gibran's biography
5)Who is your favorite author/poet/writer?
= Khushwant Singh, Premchand, Gulzar, Khalil Gibran
6)When it comes to appreciation, would you prefer a vote for your blog post or a comment?
= Comments
7)Walk at the beach or trip to the mall or a luxury cruise – what is your favorite kind of holiday?
=Luxury cruise
8)What are your thoughts about my blog or my style of writing?
= I really like your blog, especially your poetry. In a way, your poems reflect life and its ways in it.
9)Is it easy to forgive or forget?
= Not for me. If I do so then it would end there, which is why I don't punish either nor do I forgive so that the person thinks about what they have done and feels the guilt.
10)Who is your best friend?
= I am.
THE RULES
a) Thank the nominator
b) Display the award
c) Nominate 10 more bloggers with 10 new questions.
d) Answer the questions provided by the nominator
e) Notify the nominees
I nominate the following bloggers :
Jyoti: http://www.jyotidehliwal.com/
Rupam Sarma: http://www.rupamsarma.blogspot.in/
UK: http://www.fashionablefoodz.com/
Maglcey: http://mumbai-eyed.blogspot.in/
Nabanita Dhar: http://www.nabanitadhar.in/
Arun: http://movieretrospect.blogspot.in/
Clfarshays: http://blogthepoint.blogspot.in/
Ashwath Thrirumalal: http://fromaheartlilhard.blogspot.in/
Gurmeet Singh: http://www.myfreshtipz.com/
Abhijit Ray: http://occassionalmusings.blogspot.in/
And questions for you are :-
1- Who is more important in life, a nice teacher or a true friend?
2- Which one of these would you want in your house, a fantastic gym, a library or a big beautiful garden?
3- Are you a better writer or a reader?
4- Which genre do you prefer to write?
5- Who is your favorite author and poet?
6- Is blogging your hobby or passion?
7- Traveling to your dream destination, First edition (autographed by the writer) of your favorite writer's book or a chance to spend 24 hours with Amitabh Bachchan; which one would you choose.
8- Whose criticism would you prefer on your writing style, your family's or your reader's (these both like you as a writer)?
9- What are your like and dislikes in my blog?
10- What do you think life is; a novel or a poem?
Have a great day!
Friday, 13 November 2015
Sunday, 8 November 2015
Thursday, 5 November 2015
Here, the father wins
There are many mythological stories of Greece in which the son had murdered his father. Uranus was murdered by his son, Cronus, the Titan. Then Cronus was killed by his son Zeus, the Olympian. Uranus was was the God of Gods; after his death Cronus took his place and after the death of Cronus, Zeus took the throne.
The chain of inheritance continues with the death of the father. A father is always suspicious of his son. Sons waged wars against their father for the throne. Sometimes these wars and the thrones were turned unknowingly. The guilt is there after the death of the father, but so is ignorance, and as a result such events occurs from time to time. A son does what his father had done, and in turn his son rejects him too.
In Hindu mythological stories, different events are seen. Here, the father wins and the son succumbs. This defeat of the son is often glorified as Voluntarily. In Ramayana, Ram obeyed the order by given by his father of fourteen year exile. When he returns, his father is dead and he is given the throne. What happened was an ideal rule. But then in Mahabharata, the story of Yayati and Shantanu has been told. Rejecting Yadu by taking the side of Puru, and the great sacrifice by Bhishma, were the cause of the horrifying war on Kurkshaitra. Bhishma sacrificed his right to have a marital life, so that his father could marry Satyavati (his father's lover and a fisher-woman). A son sacrifices himself for his father's happiness, and is glorified as a hero.
In both cases, the sons obeyed their father, but whilst in Ramayana its result was glorified, in Mahabharata the end was tragic. Where was the difference born?
In Ramayana, the son was exiled so that he could fulfill his father's word, and so that the unity of the royal family stays intact. In Mahabharata, the sons suffer so that their fathers could indulge in happiness.
Here the issue is not about being obedient. The point is that is the obedience to maintain the root system or is it to fulfill ones own desire to stay happy. In Ramayana, the main point is Dharam and in Mahabharata its Karma and pleasure.
Subscribe to:
Posts (Atom)