Monday, 13 April 2015

मैं प्रेम के बीज बोना चाहती हू

**मैं प्रेम के बीज बोना चाहती हूं
पर नहीं जानती इस बीज से कैसा पौधा लगेगा

कही कोई बेल लग गई और मुझ से लिपट गई
बेल की नाजुकता मुझे सुकून देगी या बेल की कसावट से मेरा दम घुटेगा?

कही कोई कँटीला झाड़ पनप गया तो?
उसके काँटे मुझे मुझे दर्द देगें
उसकी वजह से बाकी सब भी मुझसे कतरायेगे 

मुझे खुबसूरत खुशबूदार फुलों का पौधा नहीं चाहिये
मुझे मीठे फलों से लबरेज़ पेड़ भी नहीं चाहिये
इनकी रौनक तो समय दर समय बदलती रहती हैं 

कोई बडा सा पेड़ भी तो लग सकता है,
जिसमे भले ही फल-फूल न लगे,
उससे गलबहिया कर मैं झूल जाया करूँगी,
जब चाहुगी उस में ही छुप जाऊँगी,
तब मैं चिडियाँ सी चहचहाऊगी,
किसी गिलहरी की तरह ऊछल कुद मचाऊँगी,
उसकी छाँव में किसी थके मुसाफिर सा सुकून पाऊँगी | 

या धरती में दबे सुसुप्त बीज की तरह अपने सीने में प्रेम
के बीज को दबा कर रखूं ओर समय पर छोड दू | 

मनीषा शर्मा~

4 comments:

  1. paudha ugne do. zindagi bas intazaar karane ke liye nahin hai.

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    1. Dayanand, kaihtai hai ki life mai risk aur chance bhi laina chahiyai, magar is mamlai mai na chance liya ja sakta hai aur na hi risk. Ha, mainai thoda waqt liya, thoda waqt aur lai sakti hu, bas.. :) :)

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