Tuesday, 16 February 2016

वे फिर भी कन्याएं ही हैं~(3)

अवश्य पढ़ेंभाग-1, भाग-2

पिछले भाग में हमने पढ़ा था कि हमारी पांचों विवाहित कन्याएं मातृहीन थी। आगे...

पांचों चरित्रों के मातृहीन से उनकी बेचारगी का कोई संबंध नहीं जुड़ता। मातृहीन होते हुए भी उनका विकास तेजस्वी और आत्मशक्ति से संपन्न होता दिखाई देता है। कल्पना करें कि इन्हें मां का संरक्षण मिला होता तो इनमें कितनी संभावनाएं और प्रकट हुई होतीं। इन कन्याओं को मातृहीन बनाने का यह भी उद्देश्य हो सकता है कि व्यक्ति स्वयं ही समर्थ है। उसके बिना भी कोई व्यक्ति विशेषतया स्त्री अपने आपको इस ऊंचाई पर ले जा सकती है कि वह पुरूष प्रधान समाज में अपना स्वतंत्र अस्तित्व सिद्ध करा सके। उस नारकीय स्थिति से भी अपने आपको उबार सके, जिसमें एक बार पड़ने के बाद स्त्री को अपना जीवन अभिशाप लगने लगे।

पांचों चरित्रों में अहिल्या और द्रौपदी को पहले गिना गया है। कुंती, तारा और मंदोदरी भी समय-समय पर छली गई पर अहिल्या और द्रौपदी के साथ हुआ छल अत्यधिक था ।
ब्रह्या ने ऋषि गौतम को अबोध बालिका अहिल्या के संरक्षण और पालन-पोषण का दायित्व दिया था। अहिल्या के बड़ी होने पर ऋषि गौतम ने उससे विवाह कर लिया। इंद्र ने गौतम का वेश धर अहिल्या संसर्ग पाया तब गौतम ने क्रोधित होकर अहिल्या को पत्थर होने का श्राप दिया।
दूसरी पात्र द्रौपदी, महाभारत की सबसे ज्यादा छली गई स्त्री है। स्वयंवर के जीत लिए जाते ही कुंती ने उसे पांचों भाईयों में बांट दिया। कुंती स्वयं उस समय की मान्यताओं और प्रचलनों की शिकार थी। उसी के हाथों द्रौपदी का बंटवारा ही शायद वह अपराध था जिसके कारण उसे द्रौपदी, अहिल्या या तारा और मंदोदरी जैसा गौरव नहीं मिला। वेदव्यास महाभारत में गाथा भी है कि कुंती ने द्रौपदी को पांचों भाइयों द्वारा बांट लेने का निर्देश नहीं दिया होता तो वह इतिहास कोई और ही मोड़ लेता। महाभारत की गाथा फिर कुछ और ही होती।

पांचों चरित्रों में प्रत्येक इतिहास पुराण या प्राचीन वांग्डमय के महान व्यक्तित्वों की या तो जननी है या उनकी पत्नी। अहिल्या ऋषि गौतम की पत्नी हैं, द्रौपदी के पति महाभारत के महानायक हैं। मंदोदरी रावण की पत्नी और मेघनाद की मां हैं। तारा भी बाली की पत्नी और अंगद जैसी शूरवीर वानर की मां हैं।कुंती पांच पांडवों की मां हैं।

अपने आसपास इतने महान चरित्रों का जमावड़ा होने के बाद हो सकता था कि पंचकन्याओं की आभा धुंधलाने लगती, लेकिन वे अपने आपके कारण जानी जाती हैं, अपने स्वतंत्र निर्णय, संकल्प और आत्मविश्वासी व्यक्तित्व के कारण।आसपास के चरित्रों की पुरूष छाया का भी उन्हें स्पर्श नहीं होता।किसी और की छाया अथवा स्पर्श से मुक्त चित्त के लिए 'कन्या' से ज्यादा सार्थक संबोघन कोई नहीं हो सकता।
इस संबोधन में संकल्प और शक्ति भी मिल जाए तो अहिल्या आदि जैसे चरित्र उभरते हैं, जो तमाम वंचनाओं के होते हुए भी स्वतंत्र हैं और इसलिए प्रातः स्मरणीय हैं।

4 comments:

  1. Main aapki khojpurn aur swatantr soch ka aadar, swaagat aur abhinandan kartaa hoon, Manisha!
    Bahut badhiya likha hai:)

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  2. बहुत विस्तार से और नए दृष्टिकोण से इतिहास को देखना भी लेखक के बस में ही होता है ... बहुत शुभकामनायें ...

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया दिगम्बर जी

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