Monday, 29 February 2016
Friday, 26 February 2016
Crossroad
Sometimes, time puts us on a crossroad
Where we have to think,
Which path should we take?
This path, or that one?
But are not able to make the right decision…
And so, we wait there in hope.
In hope to see someone,
Someone, who would take our hand,
Someone, who would lead us to the right path,
Someone, who would lead us to our destination,
And in that hope,
We are still standing on the crossroad.
Manisha Sharma~
Monday, 22 February 2016
My life

My Life,
It does not move on my accord.
It is not the same, as I want it to be.
It is not going on the route,
The one I want it to take.
It is not as colorful,
Like the many colors swimming around thoughts.
It is not light as a feather,
It is a mountain too heavy.
Even so, I am fond of life.
Because I live in hope,
That it is my life; I am Alive.
One day,
I will turn it, into a light colorful feather,
Will fly it on my favorite path,
Taking it to wherever I would want to.
My life,
I adore it.
Manisha Sharma~
Tuesday, 16 February 2016
वे फिर भी कन्याएं ही हैं~(3)
पिछले भाग में हमने पढ़ा था कि हमारी पांचों विवाहित कन्याएं मातृहीन थी। आगे...
पांचों चरित्रों के मातृहीन से उनकी बेचारगी का कोई संबंध नहीं जुड़ता। मातृहीन होते हुए भी उनका विकास तेजस्वी और आत्मशक्ति से संपन्न होता दिखाई देता है। कल्पना करें कि इन्हें मां का संरक्षण मिला होता तो इनमें कितनी संभावनाएं और प्रकट हुई होतीं। इन कन्याओं को मातृहीन बनाने का यह भी उद्देश्य हो सकता है कि व्यक्ति स्वयं ही समर्थ है। उसके बिना भी कोई व्यक्ति विशेषतया स्त्री अपने आपको इस ऊंचाई पर ले जा सकती है कि वह पुरूष प्रधान समाज में अपना स्वतंत्र अस्तित्व सिद्ध करा सके। उस नारकीय स्थिति से भी अपने आपको उबार सके, जिसमें एक बार पड़ने के बाद स्त्री को अपना जीवन अभिशाप लगने लगे।

ब्रह्या ने ऋषि गौतम को अबोध बालिका अहिल्या के संरक्षण और पालन-पोषण का दायित्व दिया था। अहिल्या के बड़ी होने पर ऋषि गौतम ने उससे विवाह कर लिया। इंद्र ने गौतम का वेश धर अहिल्या संसर्ग पाया तब गौतम ने क्रोधित होकर अहिल्या को पत्थर होने का श्राप दिया।
दूसरी पात्र द्रौपदी, महाभारत की सबसे ज्यादा छली गई स्त्री है। स्वयंवर के जीत लिए जाते ही कुंती ने उसे पांचों भाईयों में बांट दिया। कुंती स्वयं उस समय की मान्यताओं और प्रचलनों की शिकार थी। उसी के हाथों द्रौपदी का बंटवारा ही शायद वह अपराध था जिसके कारण उसे द्रौपदी, अहिल्या या तारा और मंदोदरी जैसा गौरव नहीं मिला। वेदव्यास महाभारत में गाथा भी है कि कुंती ने द्रौपदी को पांचों भाइयों द्वारा बांट लेने का निर्देश नहीं दिया होता तो वह इतिहास कोई और ही मोड़ लेता। महाभारत की गाथा फिर कुछ और ही होती।
पांचों चरित्रों में प्रत्येक इतिहास पुराण या प्राचीन वांग्डमय के महान व्यक्तित्वों की या तो जननी है या उनकी पत्नी। अहिल्या ऋषि गौतम की पत्नी हैं, द्रौपदी के पति महाभारत के महानायक हैं। मंदोदरी रावण की पत्नी और मेघनाद की मां हैं। तारा भी बाली की पत्नी और अंगद जैसी शूरवीर वानर की मां हैं।कुंती पांच पांडवों की मां हैं।
अपने आसपास इतने महान चरित्रों का जमावड़ा होने के बाद हो सकता था कि पंचकन्याओं की आभा धुंधलाने लगती, लेकिन वे अपने आपके कारण जानी जाती हैं, अपने स्वतंत्र निर्णय, संकल्प और आत्मविश्वासी व्यक्तित्व के कारण।आसपास के चरित्रों की पुरूष छाया का भी उन्हें स्पर्श नहीं होता।किसी और की छाया अथवा स्पर्श से मुक्त चित्त के लिए 'कन्या' से ज्यादा सार्थक संबोघन कोई नहीं हो सकता।
इस संबोधन में संकल्प और शक्ति भी मिल जाए तो अहिल्या आदि जैसे चरित्र उभरते हैं, जो तमाम वंचनाओं के होते हुए भी स्वतंत्र हैं और इसलिए प्रातः स्मरणीय हैं।
Sunday, 14 February 2016
वे फिर भी कन्याएं ही हैं~(2)

पिछले भाग में हमने पढ़ा कि ब्रह्या ने ऋषि गौतम को अबोध बालिका अहिल्या के संरक्षण और पालन-पोषण का दायित्व दिया था। अहिल्या के बड़ी होने पर ऋषि गौतम ने उससे विवाह कर लिया। इंद्र ने गौतम का वेश धर अहिल्या संसर्ग पाया तब गौतम ने क्रोधित होकर अहिल्या को पत्थर होने का श्राप दिया। आगे...
शिला बनी अहिल्या को उसके पुत्र शतानंद ने भी पहचानने से मना कर दिया था।अहिल्या ने भले ही शिला की तरह, जड़वत जीवन जिया हो पर अपना विश्वास और सम्मान खोया नहीं। वह अपने आपको तेजस्विनी, तपस्विनी के रूप में निखारती रही। उनके इसी तेज को आने वाले युग ने फिर से प्रतिष्ठा दी।
रामायण के ही दो पात्र और हैं तारा व मंदोदरी।
तारा बाली की पत्नी थी। बाली ने अपने भाई सुग्रीव का राज्य हड़प लिया था। तारा को वरदान था कि वह विरोधी का आधा बल खेंच सकती थी, जिससे विरोधी पस्त हो जाते। तारा जानती थी कि सुग्रीव श्री राम की शरण में था अत: उसने बाली को बहुत समझाया कि वह युद्ध को टाल दे और सुग्रीव को उसका राज्य लौटा दे मगर अपने अभिमान में बाली उसकी बात नहीं मानता है और राम के हाथों मारा जाता है। बाली की मृत्यु पश्चात तारा अपने पुत्र अंगद के बेहतर भविष्य के लिए सुग्रीव से विवाह कर लेती है।
सत्ता मिलते ही सुग्रीव भी भोग-विलास में रम जाता हैं। सुग्रीव भोग-विलास में यह भुल जाता है कि उसने श्री राम से वादा किया था कि वह माता सीता को ढूँढने में उनकी मदद करेगा। सीता को ढूँढने में होती देरी से क्रोधित होकर लक्षमण किष्किंधा पहुंचते है और सुग्रीव को फटकार लगाते है तब पटरानी तारा आगे आती हैं और क्रोधित लक्षमण समझाती हैं और शांत करती हैं।
तारा ने जिस तरह समय-समय पर अपने पतियों(बाली और सुग्रीव) को सत्परामर्श देती थी और सही रास्ते पर लाने की कोशिश करती थी, वैसे ही विशेषता मंदोदरी के चरित्र में भी थी।
वह अपने पति रावण से बार-बार अनुरोध करती हैं कि वह सीता को वापस जाने दे और राम से समझोता कर ले।
वाल्मीकि ने मंदोदरी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा मगर रामकथा के अन्य स्त्रोतों में उसके स्वत्रंत व्यक्तित्व का उल्लेख विस्तार से मिलता है। कई अवसरों पर तारा बाहुबली रावण को बेबस करती हैं। वह रावण की अवज्ञा तक करती हैं। एक यज्ञ में रावण रक्त से सनी आहुति देना चाहता है तो मंदोदरी उस यज्ञ में उसके साथ बैठने से इंकार कर देती हैं। मंदोदरी के मना करने की वजह से वह अनुष्ठान पूरा नहीं हो पाता है।
अद्भुत रामायण के अनुसार सीता मंदोदरी की पुत्री थी और देवसंसर्ग से गर्भ में आई थी। जन्म के बाद सीता को सुदूर देश भिजवा दिया था। मिथला में जहां वह राजा जनक को एक खेत में मिली।
रामायण के इन तीनों पात्रों में एक समानता है कि इनमें से किसी की भी माता का उल्लेख नहीं मिलता।
तारा के संबंध में इतना ही उल्लेख मिलता हैं कि वह वैद्यराज सुषेण की पुत्री थी। वैद्यराज जिनके उपचार से मुर्छित लक्षमण ठीक हुए थे।
अहिल्या के बारे में कहा जाता है कि उन्हें अयोनिज किया गया था, ब्रह्या ने उनका सृजन किया था।
मंदोदरी की माता का जिक्र नाममात्र का है और वह भी भ्रमित करता है।ब्रह्यांड पुराण के अनुसार वह भय दानव और अप्सरा रंभा की पुत्री थी ।वाल्मीकि ने मंदोदरी की मां का नाम हेमा बताया हैं।मंदोदरी के संबंध में इतने से उल्लेख को छोड़ दे तो वह भी तारा और अहिल्या की तरह मातृहीन ही रह जाती है।
महाभारत की दो पात्र जिनकी गणना चौथी और पांचवीं कन्याओं में किया जाता हैं-कुंती और द्रौपदी भी मातृहीन हैं।
भागवत के अनुसार कुंती शूरसेन की पुत्री और वसुदेव की बहन थी। कुंती का नाम पृथा था और राजा कुंतिभोज ने उसे गोद लिया था,इसलिए उसका नाम कुंती पड़ा।
द्रौपदी का जन्म यज्ञकुंड में आहुति देते समय हुआ था। वह आविर्भूत हुई थी और मातृहीन थी।जारी...
Thursday, 11 February 2016
वे फिर भी कन्याएं ही हैं~(1)
एक पुरानी मान्यता के अनुसार अहिल्या, द्रोपदी, कुंती, तारा और मंदोदरी का स्मरण महापापों को भी नष्ट कर देता है। इन नामों को प्रातः स्मरण में शामिल किया गया है और नामों में ऋषियों, देवताओं, तीर्थों, नारियों और पौराणिक चरित्रों के नाम हैं। उन सभी प्रतीकों से कोई सार्थक संदेश निकलता है, जबकि अहिल्या, द्रोपदी, कुंती आदि किसी के लिए भी आदर्श नहीं रही हैं। इनमें से कोई भी प्रचलित अर्थों में पारिवारिक मूल्यों के प्रति निष्ठावान नहीं रही थी। परिवार में रहते हुए भी इनके एक से ज्यादा पति या दूसरे पुरूषों से संभंध रहे हैं। किसी आधुनिक या स्वछंद जीवन मूल्यों को महत्व देने वाले प्रवाह में इन पात्रों को महत्व दिया जाता तो भी समझ आ सकता था।उस समाज में महत्व मिलना आश्चर्य ही है जहां सीता, सावित्री, अरूंधति, दमयंती और गौरी जैसे चरित्र की पूजा होती हो। पांचों चरित्रों के स्मरण का संदेश देने वाला श्लोक इस प्रकार है-
अहिल्या, द्रौपदी, तारा, कुंती, मंदोदरी तथा।
पंच कन्या स्मरेन्नित्यं महापाS तक नाशनम्।।
(ब्रह्रांड पुराण 3/7/219)
पांचों स्त्रियां विवाहित हैं। इनमें द्रोपदी के तो एक ही समय में पांच पति हैं। कुंती बारी-बारी से सूर्य, इंद्र, अग्नि आदि देवताओं का वरण करती है। अहिल्या के संबंधों को आदर से नहीं देखा जाता। तारा और मंदोदरी भी पतिव्रता की कसौटी पर खरी नहीं मानी गई। फिर भी इन्हें कन्या ही माना जायगा।
कन्या जिसका अर्थ दस वर्ष तक की अविवाहित लड़की है जो अभी रजस्वला नहीं हुई है और यौन सुख तो जिसने जाना ही नहीं है।
अहिल्या आदि के लिए इस संबोधन में कोई व्यंजना नहीं है। जब उन्हें कन्या कहा जा रहा है तो इसका मतलब है कि ये पांचों छोटी बच्चियों की तरह सरल और निर्दोष थी।
पति को परमेश्वर मानने और स्वप्न में भी परपुरुष की कल्पना तक को अधर्म बताने वाले समाज में अहिल्या, द्रोपदी आदि को परम पवित्र घोषित करने का कोई अर्थ है। पांचों को कन्या की तरह निर्मल और पुरूष की छाया तक से अछूता बताने वाला यह श्लोक प्रात: स्मरणीय पदों से अनायास ही नहीं आ गया।
इसके पीछे परम्परा का बल है, जिसमें गहन और सूक्ष्म भाव भरे हुए हैं।
पांचों चरित्र रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में विकसित हुए हैं। इन्हीं ग्रंथों में सीता, अरूंधति, दमयंती, सावित्री, पार्वती और अनुसुइया जैसी सति साध्वी का देवियों की भी वंदना भी की गई है। इसके बावजूद अहिल्या, द्रौपदी आदि का मान कम नहीं किया गया। स्पष्ट है कि न सती साध्वी का आदर्श सर्वोपरि है और न ही निजता इतनी महत्वपूर्ण है कि उसके लिए पारिवारिक मूल्यों की उपेक्षा कर दी जाए। अहिल्या, द्रौपदी आदि ने संबंधों के मामले में स्वयं निर्णय लेते हुए भी परिवार की कहीं उपेक्षा नहीं की थी।
पांचों चरित्र या कन्याओं में तीन अहिल्या, तारा और मंदोदरी का उल्लेख रामायण में आया है। कुंती और द्रौपदी महाभारत की पात्र हैं। यो महाभारत में सत्यवती, देवयानी, उर्वशी आदि महिलाएं भी हैं, परंतु इन्हें कन्या की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। रामायण और महाभारत के इन पांच महिला पात्रों को कन्या कहने का उद्देश्य है। इसे आधुनिक अर्थों में स्त्री स्वातंत्र्य के प्रतिमान की तरह नहीं पारम्परिक या पौराणिक दृष्टि में स्त्री की निजता, शक्ति और स्वतंत्र सत्ता को मान्यता देने के रूप में ही देखा जा सकता है।
पांचों कन्याओं के चरित्र में एक समानता है। इनमें से कोई भी सदमूल्यों के आगे नतमस्तक नहीं।सदमूल्य जिनमें पति को परमेश्वर मानना सिखाया जाता है और स्त्री का धर्म उसके अलावा संतानों या परिवार के दूसरे सदस्यों की सेवाचाकरी तक ही सीमित कर मान लिया जाता है। स्त्री से अपेक्षा की जाती है कि वह इन मूल्यों के संदर्भ में खींची गई लक्ष्मण रेखा को किसी भी स्थिति में नहीं लावे, पति या परिवार के सदस्य भले ही कितने ही पतित और भ्रष्ट हों, हो सकता है स्त्री को पति और परिवार की सीमा में ही जकड़ लेने वाले बंधन बाद में कसे गए हों। तब पंचकन्याओं का स्मरण व संदेश और भी ज्यादा प्रभावी हो गया हैं।
इन चरित्रों के संबंध में ध्यान रखना जरूरी है कि पांचों के विवरण में किसी तथ्य का उल्लेख नहीं है। वे काव्य में आए वर्णन हैं और उन्हें तथ्यों के बजाय रूपक और प्रतिकों के माध्यम से ही समझा जाना चाहिए।
अहिल्या इन पांच कन्याओं में पौराणिक कालचक्र में सबसे पुरानी हैं। भागवत और ब्रह्यापुराण के अनुसार अहिल्या ब्रह्या की पुत्री थी। जन्म या उसे रचते ही ब्रह्या ने अहिल्या को ऋषि गौतम के पास छोड़ दिया था। अहिल्या युवती हुई तो उसका विवाह भी गौतम ऋषि से ही कर दिया गया। इंद्र, अग्नि और स्वंय ब्रह्या भी अहिल्या से विवाह करना चाहते थे। विवाहिता होने के बावजूद कई देवताओं में अहिल्या को पाने की लालसा थी। इंद्र ने तो ऋषि गौतम का वेश धारण करके अहिल्या का संसर्ग पा भी लिया था। ऋषि को जैसे ही पता चला उन्होंने अहिल्या और इंद्र दोंनों को श्राप दिया।
रामायण के आदिकांड में अहिल्या का वर्णन काफी कुछ स्पष्ट है। वह इंद्र के प्रणय प्रभाव का जान-बूझकर स्वागत कर बैठती हैं। पति गौतम के प्रौढ़ और वनवासी व्यक्तित्व की तुलना में इंद्र ज्यादा आकर्षित करते हैं और बाद में वह अपनी स्वीकार का प्रश्रय भी करती हैं।ब्रह्या ने तो अहिल्या को जब ऋषि गौतम के संरक्षण में जब सौंपा था तब वह बालिका थी और जब वह बड़ी हुई तो ऋषि गौतम ने जाने-अनजाने में उसे अपनी पत्नी बनाया। यह संबंध भले ही ब्रह्या की सहमति से बना हो पर अहिल्या इसे स्वीकार नहीं कर पाई ।उसके मन में अन्यथा असहमति पलती रही
और इंद्र के निवेदन के समय विरोध के रूप में प्रकट हुई।इंद्र को स्वीकार करना अहिल्या की अपनी आकांक्षा और ब्रह्या तथा गौतम के प्रति विरोध व्यक्त करने के रूप में भी था।
इन संबधों और घटनाओं के इन उतार-चढ़ावों के बावजूद अहिल्या का अपना शील, नारीत्व और स्वाभिमान अक्षत रहा। इस अक्षत भाव को ही ब्रह्यांड पुराण के गायक ने कन्या के रूप में पहचाना।
कालांतर में राम अहिल्या को वापस प्रतिष्ठा दिलाते हुए-श्राप से पाषाण हुई अहिल्या को श्रापमुक्त कर वापस नारी के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं।
आगे हम अन्य कन्याओं के बारे में जानेगें...
Saturday, 6 February 2016
Lies of Nobel
