Thursday, 10 March 2016

रद्दी




किसी कबाड़ी वाले के इंतजार में

दुछत्ती पर रखा रद्दी के रूप में

पुराने अखबारों का ढेर,

दिन और महीनों के हिसाब से रखे वे

ज़िन्दगी के कितने ही पल बिताये इनके साथ

कितनी ही कतरनें काटी थी, इनमें से

अनोखी और दिलचस्प

आज तक जमा हैं, एक रंगीन किताब बना कर,

ज़िन्दगी भी किसी अखबार सी ही लगती हैं

कुछ रंगीन कुछ सनसनीखेज और

बहुत कुछ बेकार और बेमतलब सी

कितने ही पल और दिन ज़िन्दगी के भी

रद्दी समान ही लगते हैं

ज़िन्दगी के इस कबाड़ के लिए

किसका इंतजार करूँ?

दिन ब दिन रद्दी का भार बढ़ता जा रहा है

दिल, दिमाग और दुछत्ती पर भी।।

मनीषा शर्मा~

14 comments:

  1. Wonderful comparison of newspaper & life with a profound message.

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  2. मनिषा जी, रद्दी में से भी हम हमारे काम की बातों की कतरने ढुंढ ही लेते है। ऐसे ही जीवन में भी बेकार के क्षणों में से जब हम हसीन पल ढुंढ लेते है तो जीवन भी अखबारों के कतरनों की तरह महत्वपुर्ण लगने लगता है। बढिया प्रस्तुति।

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    1. शुक्रिया ज्योति जी :)

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  3. रद्दी जमा न होने दे कागज़ के लिफाफे बना लें और उपयोगी हो जाएगी ,ज़िन्दगी भी इसी तरह उपयोग में लाई जा सकती है

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    1. हा हा हा लिफाफे का सुझाव अच्छा हैं :) लेकिन हर किसी की recycling नहीं हो पाती है

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  4. waah....kya baat hai......kavi ki soch kitni gahri hoti hai.....

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  5. Very thoughtful and intense, I like your choice of words!

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  6. Dilchasp aur behtareen rachna!!

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  7. Bahut hi umda Comparison Manisha............We Keep Collecting some Precious Memories, thinking of Cherishing them at some liesure time, unfortunately , We do not get enough time to De Clutter and Many Precious and Cherishbale Moments are wasted

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    1. Thank you Anil :) You are right, we keep things aside, we keep family and friends aside, and their memories too thinking we can give them our time later but we forget that time never waits for us.

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