A blog about simple yet neglected important life topics.
Friday, 25 March 2016
चाह की मंज़िल
चाह की मंज़िल
कब मिली किसी को यहाँ
फिर क्यों सोचते हो?
मिल जायेगी तुमको
सपनों की दिवार घेरे
यथार्थ को बाहर किये
किस लोक में घुमा रहे हो
अपने मन को
दूरियां बढ़ती रहेगी
इसलिये
आओ
कुछ पल बात करें
फिर न जाने
मिले की न मिले।
Wah Athi Sundar Kavitha Likhi hai aapne Manisha ji :)
ReplyDeleteThe Solitary Writer
Thank u so much The Solitary Writer :)
Deleteso true....
ReplyDeleteEveryone knows this in their heart, Sunaina. But at the the end its their mind they listen to instead.
Deletetruth nicely depicted through words.
ReplyDeleteThank u Jyotirmoy Sarkar
Deleteमनीषा जी, इंसान जो चाहता है वो उसे मिले ही यह जरुरी नहीं है। इस बात को बहुत ही सुन्दर तरीके से व्यक्त किया है आपने।
ReplyDeleteबस यही तो ज्योति जी, हमें बस इतना ही समझना हैं कि जो अभी मौजूद हैं उसका लुफ्त ले आगे की चिंता में अभी को न खो दे :)
DeleteBilkul sahi!
ReplyDeleteSundar abhivyakti!!
Shukriya Amit :)
Deletewah! bahut acchi lines likhi hain aapne......
ReplyDeleteBahut bahut shukriya Amul :)
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