कुछ दिन पहले किसान गजेंद्र ने दिल्ली में आप पार्टी की किसान रैली में सरेआम फाँसी लगा ली। तब से अब तक ये समझने की कोशिश की जा रही है कि आखिर ये क्यों हुआ। राजनैतिक पार्टियां एक-दुसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही है। गजेंद्र के परिवार जन इसे एक राजनैतिक साजिश बता कर सीबीआई जाँच की मांग कर रहे है।साथ ही गजेंद्र के परिवार को मुआवजा नहीं सरकारी नौकरी चाहिए।सब अपने-अपने फायदे बटोरने
में लगे है। आखिर ये गजेंद्र था कौन? मेरी नज़र में वो एक प्रसिद्धी पाने की चाह रखने वाला इंसान था। वो राजनीति में जगह बनाने की कोशिश में सालों पार्टीदर-पार्टी
भटकता रहा। सबसे नई पार्टी आप उसका ताजा ठिकाना थी। गजेंद्र स्वयं एक सम्पन्न किसान था तो आखिर वो पेड़ पर क्यों चढ़ा? खुद के लिये तो नहीं तो क्या दुसरे किसानों के लिये? क्या वो सिर्फ फाँसी लगाने का नाटक कर रहा था? लोग चिल्ला कर उसे प्रोत्साहित कर रहे थे, मीडिया नेताओं के भाषण से ज्यादा उसे दिखा रही थी ओर दुर्भाग्यवश वो फंदे पर झूल गया।हजारों की भीड़, हिन्दुस्तान की सारी मीडिया ओर मंच पर बड़े-बड़े नेता। अगर दिल्ली
का मुख्यमंत्री स्वयं वहां थे तो जाहिर सी बात पुलिसकर्मियों की भी वहां कमी नहीं रही होगी। आखिर गजेंद्र को क्यों नहीं बचाया जा सका?
इस घटना से मुझे एक अन्य घटना याद आती है।
1993 में सूडान में भयंकर अकाल पड़ा था,जिसमें लाखों लोग मारे गए थे, यह फोटो उसी वक्त का है, फोटोग्राफर थे केविन कार्टर , एक इस फोटो की वजह से दुनिया
का ध्यान सूडान मैं पड़े अकाल की तरफ गया, फोटो मैं साफ दिख रहा है कि भूख से बेहाल एक बच्चा दम तोड़ रहा है, और उसके पीछे एक गिद्ध इस ताक मैं बैठा है कि कब यह बच्चा दम तोड़े, और वह इसे अपना निवाला बना सके, इस फोटो को पुलित्ज़र अवार्ड
दिया गया, इस अवार्ड
की तुलना आस्कर से और नोबेल पुरस्कार से की जाती है, कार्टर
को मान सम्मान मिला, मगर मिडिया
ने सवाल किया कि कार्टर फोटो खींचने के बाद तुम्हने बच्चे का क्या किया, कार्टर
का जबाब था मेरा काम सिर्फ फोटो खींचना है, उसके बाद मैं वापस आ गया, बस मिडिया ने और लोगों ने कार्टर से पूछना शुरू कर दिया कि एक मरते बच्चे की कीमत तुम्हारे लिए एक फोटो से ज्यादा
नहीं है, जबकि तुम्हें इसे बचाने की हर मुमकिन कोशिश करनी चाहिए थी, लोगों ने उन्हें
इस असंवेदनशीलता के लिए इस कदर कोसा कि पुरस्कार मिलने के कुछ दिन बाद कार्टर ने आत्महत्या कर ली, कारण उनके अन्दर का जमीर जाग गया था, उन्हें लग गया कि उस बच्चे की मौत के लिए वही जिम्मेदार हैं, उन्हें लग गया कि उस वक्त फोटो खींचने की बजाय उन्हें उस बच्चे की मदद करनी चाहिए थी ।
कार्टर के अन्दर तो जमीर था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली, काश हमारे देश की मिडिया, नेताओं
ओर वहां मौजूद रहे जन समुदाय के अन्दर का जमीर भी जाग जाए तो उन्हें दिख जाएगा कि इस ख़ुदकुशी में वे भी बराबर के भागीदार हैं।गजेन्द्र किसी भी मकसद से फंदा लगा कर पेड़ पर चढ़ा हो, वो किसी भी पार्टी का सदस्य रहा हो था तो एक इंसान एक जीवित इंसान। उसे बचाने की कोशिशें की जानीं चाहिए थी। गजेन्द्र जब पेड़ पर फाँसी लगाने का नाटक करने के लिये चढ़ा तब लोग चिल्लाते रहे जिसमें से कुछ उसे फाँसी के लिये उकसा भी रहे थे, मीडिया उसे लगातार केप्चर करती रही ओर नेता भाषण देते रहे। पुलिस ओर फायरब्रिगेड मूकदर्शक बने रहे।
देखा जायें तो दोनों घटनाओं में हत्या ही हुई इंसान के साथ इंसानियत की भी।
baat to aapne pate ki ki hai ! hame sonchana chahiye ki insaliyat ki jalti lash par apni roti sekane ke liye ham aaj kyun taiyaar rahate hain.
ReplyDeleteDayanand, afsos aur aascharya zyada tab hota hai jab ghar walai muawzai aur naukri kai lalach mai phasai huai dikhtai hai. Phir chahai rape case mai ho ya seema par shaheed huai jawan ka pariwar ho.
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