हर मरूस्थल के नीचे एक सागर होता है।
हर सागर भी एक मरूस्थल ही तो है।
मीठी नदी सागर में समाती है और खारी हो जाती है।
तट की भीड़ का हर इंसान अंदर से निराश व हारा हुआ है। बसती में सुख -दुख, अच्छा -बुरा सब कुछ है।
मगर जंगल में शान्ति , सुकून और सुंदरता है।
तुम्हारी स्थिरता से ही उसकी निरंतरता कायम है।
ऋतुओं की तरह तुम मत (फितरत)बदलो स्थिर रहो।
हर पल को जियो, भले ही पल भर को जियो।
मनीषा शर्मा~
बहुत खूब ... हर पल जीबा ही जीवन है ...
ReplyDeleteशुक्रिया Digamber,हर पल में जीवन है :)
Deleteपल पल से जीवन का निर्माण और पल में ही विनाश।
ReplyDeleteहाँ अनीता, मगर निर्माण में खुदगर्जी न हो तो विनाश से बच सकते हैं। शुक्रिया :)
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