एक सच एक भरम
तुम्हारा होना
मरूस्थल में एक झरने की
भीगती उम्मीद सा कुछ
पत्थर की दीवार पर
झूमती लताओं-सा कुछ
तपती धूप में छाई
घटाओं-सा कुछ
उलझी पतंग की
फिर से उड़ान की चाह सा कुछ
दीमक लगे ठूंठ में
हरा-भरा होने की तड़प सा कुछ
तुम्हारा होना
एक सच के साथ
एक भरम लिए हुए
मनीषा शर्मा~
aww... badhiya... dil ko choone wala :-)
ReplyDeleteThank you Archana, hamaisha mairi koshisho ko sarahnai kai liya :) Hum jaisai nayai writers ko issai prohtsahan milta hai.. Thank you, once again :)
DeleteWaah mohtarma!
ReplyDeleteShukriya Rishie
Deletetumhara hona....kavita mein naya jeevan bharna!
ReplyDeleteBilkul sahi kaha Lata ji :)
DeleteShaandaar!!
ReplyDeleteThank u Amit
DeleteLovely....seriously lovely.!!!
ReplyDeleteThank u Shraddha
Deleteबेहतरीन कविता ... :) Loved it a lot.. :)
ReplyDeleteशुक्रिया Yogesh :)
DeleteKya likhte ho aap...bahut khoob :)
ReplyDeleteShukriya Alok :)
Deleteभाव... किसी अविस्मरणीय का स्मरण कराता सा कुछ।
ReplyDeleteवाह!! बहुत सुन्दर रचना
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