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Thursday, 30 April 2015

प्रथ्म प्रहर हूं मैं

देवताओं में महादेव हूं

असुर में रावण

फुलों में कमल

नदी में गंगा

धातु में सोना

पक्षी में काक

पशु में ऊँट

ग्रहों में धरती

जीव में चींटी

ऋतुओं में गरमी

पेडों में बरगद

भाव में प्रेम

रंगो में सफेद

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प्रथ्म प्रहर हूं मैं


मनीषा शर्मा~


Wednesday, 29 April 2015

Education and its importance

It is critically important to understand what education is and why it is mandatory.

Mitali stopped in her tracks as she was walking out of the classroom, when she heard two of her talking to each other and saying how hot and sexy she is. Mitali is the teacher of the sixth standard. She could not understand if these children really understand the meaning of hot and sexy. Today children take’s the kissing scenes in the movies extremely effortlessly. Whether the ad’s of sanitary napkins or undergarments; children understands it all. They even have the pressure of making boyfriends-girlfriends in schools. All say that this is the age of the Internet and nowadays kids can learn everything there; and their curiosity provokes them to try it all too. Parents, teachers and government, they all think that sex education should become a necessary subject in all schools so that the children would know the difference between right and wrong. Today minors are getting arrested for crimes such as rape, theft and even murder. If kids really do learn everything from the internet then why emphasize sex education in schools? But if we still think that sex education is important then along with it we need make law education and self-defense necessary too. Because the lack of one among these three (sex, law and defense education) will not let the others pass by and we really need to understand that. Why not add legal clauses in the subjects such as, social-science, civics and general knowledge? Learning legal clauses seems like a better idea rather than ranting the names of kings and years from the history subject; some legal cases can be explained too.

Just as there are science-arts exhibitions; small courts can be put out for colleges and the city's best lawyers and retired judges, can come in and held out debates for some cases.

Girls’ needs to know more about legal information’s than boys. Because it is a bitter truth that women have to struggle in all areas more than men, whether they are in their parental house or in-laws or at workplace. We should know about our legal rights wherever we are; in a government office, police stations, hospitals or other place. There should be some important arrangements, especially for girls.

Along with this, education of self-Defense is necessary too. When giving training for scouts and guides in school-college, self defense (judo-karate) should be taught too. In most of the homes, boys are taught to drive two/four wheelers but it is not deemed necessary to teach girls too, so in colleges they should get some driving lessons too. From the school level first doctors should give first-aid information to the children; firemen can teach how to help and rescue in situations such as earthquake, panic and fire; traffic police can make them aware of the traffic regulations; all this can be taught not in a formal way but at least seriously.

Children, especially girls; should be get the chance to complete their education; so that they will find themselves mentally and physically strong enough to make any important life decision without any hesitation.

Tuesday, 28 April 2015

मेरी मासूम हसरते

मुझे पसंद नहीं कि

तुम मुझे समझते हो..

मुझे पसंद नहीं कि

तुम्हें जन्मदिन,शादी की सालगिरह,

हमारी पहली मुलाकात का दिन,सब याद रहे

मुझे पसंद नहीं कि

तुम मेरे चेहरे व मन के भाव पढ़ लेते हो..

मुझे पसंद नहीं कि

तुम मेरी ज़रूरतों हसरतों को पहचानते हो..

मुझे पसंद नहीं कि

तुम मेरी हर गलती पर मुस्कुराते हुए कहो कोई बात नहीं

मैं लड़ना-झगड़ना चाहती हूं,

मैं मान-मनवार करना और करवाना चाहती हूं,

मैं तुम्हें मुझको पाने के लिये भटकाना चाहती हूं,

और तुम्हें पाने के लिये तड़पना चाहती हूं

मुझे पसंद नहीं कि

सब मेरी किस्मत पर रश्क़ करें मेरे पास तुम हो..

तुम्हारे पास मैं हूं उसका क्या?


मनीषा शर्मा~

Saturday, 25 April 2015

एक था गजेंद्र


कुछ दिन पहले किसान गजेंद्र ने दिल्ली में आप पार्टी की किसान रैली में सरेआम फाँसी लगा ली। तब से अब तक ये समझने की कोशिश की जा रही है कि आखिर ये क्यों हुआ। राजनैतिक पार्टियां एक-दुसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही है। गजेंद्र के परिवार जन इसे एक राजनैतिक साजिश बता कर सीबीआई जाँच की मांग कर रहे है।साथ ही गजेंद्र के परिवार को मुआवजा नहीं सरकारी नौकरी चाहिए।सब अपने-अपने फायदे बटोरने में लगे है। आखिर ये गजेंद्र था कौन? मेरी नज़र में वो एक प्रसिद्धी पाने की चाह रखने वाला इंसान था। वो राजनीति में जगह बनाने की कोशिश में सालों पार्टीदर-पार्टी भटकता रहा। सबसे नई पार्टी आप उसका ताजा ठिकाना थी। गजेंद्र स्वयं एक सम्पन्न किसान था तो आखिर वो पेड़ पर क्यों चढ़ा? खुद के लिये तो नहीं तो क्या दुसरे किसानों के लिये? क्या वो सिर्फ फाँसी लगाने का नाटक कर रहा था? लोग चिल्ला कर उसे प्रोत्साहित कर रहे थे, मीडिया नेताओं के भाषण से ज्यादा उसे दिखा रही थी ओर दुर्भाग्यवश वो फंदे पर झूल गया।हजारों की भीड़, हिन्दुस्तान की सारी मीडिया ओर मंच पर बड़े-बड़े नेता। अगर दिल्ली का मुख्यमंत्री स्वयं वहां थे तो जाहिर सी बात पुलिसकर्मियों की भी वहां कमी नहीं रही होगी। आखिर गजेंद्र को क्यों नहीं बचाया जा सका?
इस घटना से मुझे एक अन्य घटना याद आती है।

1993 में सूडान में भयंकर अकाल पड़ा था,जिसमें लाखों लोग मारे गए थे, यह फोटो उसी वक्त का है, फोटोग्राफर थे केविन कार्टर , एक इस फोटो की वजह से दुनिया का ध्यान सूडान मैं पड़े अकाल की तरफ गया, फोटो मैं साफ दिख रहा है कि भूख से बेहाल एक बच्चा दम तोड़ रहा है, और उसके पीछे एक गिद्ध इस ताक मैं बैठा है कि कब यह बच्चा दम तोड़े, और वह इसे अपना निवाला बना सके, इस फोटो को पुलित्ज़र अवार्ड दिया गया, इस अवार्ड की तुलना आस्कर से और नोबेल पुरस्कार से की जाती है, कार्टर को मान सम्मान मिला, मगर मिडिया ने सवाल किया कि कार्टर फोटो खींचने के बाद तुम्हने बच्चे का क्या किया, कार्टर का जबाब था मेरा काम सिर्फ फोटो खींचना है, उसके बाद मैं वापस गया, बस मिडिया ने और लोगों ने कार्टर से पूछना शुरू कर दिया कि एक मरते बच्चे की कीमत तुम्हारे लिए एक फोटो से ज्यादा नहीं है, जबकि तुम्हें इसे बचाने की हर मुमकिन कोशिश करनी चाहिए थी, लोगों ने उन्हें इस असंवेदनशीलता के लिए इस कदर कोसा कि पुरस्कार मिलने के कुछ दिन बाद कार्टर ने आत्महत्या कर ली, कारण उनके अन्दर का जमीर जाग गया था, उन्हें लग गया कि उस बच्चे की मौत के लिए वही जिम्मेदार हैं, उन्हें लग गया कि उस वक्त फोटो खींचने की बजाय उन्हें उस बच्चे की मदद करनी चाहिए थी  

कार्टर के अन्दर तो जमीर था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली, काश हमारे देश की मिडिया, नेताओं ओर वहां मौजूद रहे जन समुदाय के अन्दर का जमीर भी जाग जाए तो उन्हें दिख जाएगा कि इस ख़ुदकुशी में वे भी बराबर के भागीदार हैं।गजेन्द्र किसी भी मकसद से फंदा लगा कर पेड़ पर चढ़ा हो, वो किसी भी पार्टी का सदस्य रहा हो था तो एक इंसान एक जीवित इंसान। उसे बचाने की कोशिशें की जानीं चाहिए थी। गजेन्द्र जब पेड़ पर फाँसी लगाने का नाटक करने के लिये चढ़ा तब लोग चिल्लाते रहे जिसमें से कुछ उसे फाँसी के लिये उकसा भी रहे थे, मीडिया उसे लगातार केप्चर करती रही ओर नेता भाषण देते रहे। पुलिस ओर फायरब्रिगेड मूकदर्शक बने रहे।  

देखा जायें तो दोनों घटनाओं में हत्या ही हुई इंसान के साथ इंसानियत की भी।