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Monday 28 December 2015

यह आज़ादी फिल्मी है!








जंग-ए-आज़ादी का पूरा सफर बॉलीवुड ने नज़दीक से देखा, समझा और साझा किया। राष्ट्रीय चेतना से लबालब बहुत-सी फिल्में बनीं और उनके गीत जन-जन की सांसों से जैसे एकसार हो गए। हालांकि अब देशभक्ति से भरपूर फिल्मों का निर्माण नहीं हो रहा। देशप्रेम बॉलीवुड के लिए एक फॉर्मूला भर रह गया है...

 

जंग-ए-आजादी का जज़्बा भी क्या खूब था। सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत को गुलामी की जंजीरों में बंधा देख कर रणबांकुरों का खून खौल उठा। सबकुछ कुर्बान कर उन्होंने स्वत्रंता हासिल की। आज़ादी की इस पूरी यात्रा को सिनेमा की दुनिया ने भी देखा-समझा-साझा किया। स्वतंत्रता के पहले का दौर, आजादी तक का सफर और बाद में पड़ोसी देशों से हुई लड़ाईयों को हिंदी फिल्मों में अच्छी तरह चित्रित किया गया।

अंग्रेजों के दमन के डर से अधिकतर फिल्मकारों ने पौराणिक प्रतिकों के सहारे आज़ादी की कथाओं को ढंककर पेश किया, लेकिन बाद में हिंदी सिनेमा ने बर्तानिया हुकूमत के खिलाफ़ खुलकर आवाज़ बुलंद की। ऐसी फिल्में न सिर्फ सराही गई, बल्कि इनके गीत भी खासे मशहूर हुए।

1943 में आई फिल्म किस्मत का गीत दूर हटो ऐ दुनिया वालों, हिंदुस्तान हमारा हैं... हर भारतीय के लबों पर मचलता था। फिल्म शहीद के वतन की राह में वतन के नौजवां शहीद हो, ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम और मेरा रंग दे बसंती चोला की मशहूरियत के तो कहने ही क्या।

स्वतंत्रता के ठीक बाद आई 1949 की फिल्म बाज़ार का गीत शहीदों तुमको मेरा सलाम... चर्चित रह, तो नया दौर का ये देश है वीर जवानों का... अब भी हर मौके पर सुना जाता है।

 

अब कोई गुलशन ना उजड़े अब वतन आजाद है(मुझे जीने दो), जिस मुल्क के सरहद की निगहबान हैं आंखें(आंखें), नौजवानों भारत की तकदीर बना दो(कुंदन), कर चले हम फिदा जानो तन साथियों(हकीकत), ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा याद करो कुरबानी(हकीकत), चल-चल रे नौजवान, रूकना तेरा काम नहीं, चलना तेरी शान(बंधन), सुनो-सुनो ऐ दुनिया वालों(बापू की अमर कहानी,1949),जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, वो भारत देश है मेरा(सिकंदर-ए-आजम), हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के,आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं, दे दी हमें आजादी(जागृति),ऐ मेरे प्यारे वतन, इंसाफ की डगर पे(गंगा-जमुना), नन्हा-मुन्ना राही हूं(सन आफ इंडिया), हम हिन्दुस्तानी, मेरे देश की धरती(उपकार), जब जीरो दिया मेरे भारत ने,है प्रीत जहां की रीत सदा(पूरब-पश्चिम), अपनी आज़ादी को हम(लीडर), मेरे देशप्रेमियों(देशप्रेमी), और अब के बरस(क्रांति) ये कुछ ऐसे गीत हैं, जो सदा के लिए अमर हो गए।

आज़ादी की लड़ाई के साथ कई फिल्में गोवा विद्रोह,1857 की क्रांति, भ्रष्टाचार के खिलाफ भी कई फिल्में बनी।

क्रांति, क्लर्क, पूरब-पश्चिम जैसी फिल्मों से मनोज कुमार उर्फ भारत कुमार ने खुब नाम और दाम कमाया। कर्मा और तिरंगा जैसी फिल्मों में काफी फिल्मी देश भक्ति के भाव थे।

हर करम अपना करेंगे, ऐ वतन तेरे लिए(कर्मा), देखो वीर जवानों अपने खून पे ये इल्ज़ाम न आए(आक्रमण), ये माटी सभी की कहानी कहेगी(नवरंग) भी काफी चर्चित गीत रहे।

राष्ट्रप्रेम पर बनी सरफरोश, रंग दे बसंती, द लीजेंड आफ भगत सिंह, गांधी(1982),समाधि, पहला आदमी, आज़ादी की राह पर, आंदोलन, हिंन्दुस्तान हमारा, जीवन संग्राम,23मार्च1931,बोस द फॉरगॉटेन हीरो, शहीद नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सम्राट पृथ्वीराज चौहान, बॉर्डर, लगान, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी, एलओसी कारगिल, मंगल पांडे और वीर-जारा भी कहीं जा सकती है।

जागृति,1965 में आई शहीद, शहीद भगत सिंह(1963),ललकार(1972) सरीखी फिल्में इस धारा और भाव का प्रामाणिक दस्तावेज़ कहीं जा सकती है।

 

लेकिन अब देशप्रेम महज एक बिकाऊ फॉर्मूला बन कर रह गया है। हर फिल्म में चीख-चीखकर पाकिस्तान को गांलियां देने के सिवा कुछ नहीं होता। राष्ट्र के संपूर्ण भाव और देश के लिए प्रेम के विचार को चित्रित करती फिल्में अब बनती नहीं, अगर कोई निर्माता बनाना भी चाहे तो उसे फाइनेंसर और वितरक नहीं मिलते।

Saturday 19 December 2015

अगर तुम







गूंथ दो मेरे बालों को

कविताओं में

मेरे अंगों को कविताओं

में परिवर्तित कर दो

कविताओं के आभुषण पहनाओं मुझे

कविताओं के स्नान पश्चात

मुझे कविता का पर्याय समझ सकें,

अगर

यकीन मानों

बेझिझक,निस्संकोच

बिना मान-मनवार

मैं चल दूगी, तुम्हारे साथ।


मनीषा शर्मा~

Tuesday 15 December 2015

बांहे



रजनीगन्धा से महके

निशा के

पिघलते जिस्म को

संभालने को

आदित्य की आतुर बांहें


मनीषा शर्मा~


निशा-रात
आदित्य-सूरज

Sunday 13 December 2015

सुंदर और असाधारण राधा



राधा जब कृष्ण से मिली थी तब तक उनका विवाह हो चुका था। कृष्ण के साथ उनका संबंध ऐसा था कि उसके साथ रहने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यदि उन्हें सबका सहयोग भी मिल जाता तब भी उनका विवाह संभव नहीं था। यह बात राधा जानती थी तब भी अपने जीवन की अंतिम सांस तक वह कृष्ण को चाहती रही तो स्पष्ट है कि यह सब वह बिना किसी भ्रम के करती रही। कृष्ण के साथ अपने संबंधों का आधार उसने सांसारिक रूप से एक-दूसरे के साथ रहने के बजाय कुछ और बनाया, जो इससे कहीं अधिक श्रेष्ठ था।

 

यदि व्यक्ति में कामना की निष्फलता को स्वीकार करने का साहस है तो यह संभव ही नहीं कि किसी भी स्थिति में वियोग से पराजय स्वीकार करेगा।

 

सब कृष्ण को एक मात्र सत्य मानते है और राधा उनके लिए या तो कृष्ण का एक अंश है या फिर एक ऐसा साधन, जिससे वे कृष्ण की श्रेष्ठता को प्रदर्शित करते हैं। सबके लिए राधा एक उर्जा है-एक विशिष्ट उर्जा जो केवल कृष्ण की ही है। इसी दृष्टिकोण की वजह से राधा को कभी कृष्ण से भिन्न होने ही नहीं दिया गया। वियोग के वे क्षण राधा को दिए ही नहीं, जिनमें अपने होने की वेदना को झेला हो। यह सत्य है कि बाद में उसने कृष्ण के साथ एकरूपता प्राप्त कर ली थी पर उसने अपना पूरा जीवन या कम से कम जीवन का एक बहुत बड़ा भाग निरंतर आघातों को झेलने में बिता दिया होगा। ये क्षण कैसे असामान्य साहस के क्षण रहे होंगे।

 

कहा जा सकता है कि राधा वास्तव में साहसी थी तो जब उसे पता लगा कि उसका इष्ट उसे प्राप्त नहीं हो सकता तथा कृष्ण से उसका मिलन कभी नहीं हो सकता, तो उसमें अपने जीवन को समाप्त पर देने का साहस भी होना चाहिए था। 

तो राधा ने आत्महत्या क्यों नहीं की? वह प्रारंभ से जानती थी कि कृष्ण के साथ रहना असंभव है। हालांकि यह बात उसके लिए दुख का कारण रही होगी पर उसने स्वयं को यह बात स्वीकार करने के लिए तैयार कर लिया होगा और इसे सहना सीख लिया होगा।

 

इसमें मतभेद हो सकते है कि आत्महत्या करना अति साहस का काम है या अति कायरता का। पर कुछ परिस्थितियों में स्वेच्छा से मृत्यु का वरण करने की अपेक्षा जीवित रहना निस्संदेह अधिक साहस का काम है।

राधा निराशा के लिए पहले से ही तैयार होगी और धीरे-धीरे इसे जीवन का एक सामान्य अंग मान लिया होगा और उसे जीवन के प्रति किसी प्रकार की आशंका का अनुभव ही नहीं रहा होगा। उसने अपना पूरा जीवन जिया और जीवन भर निराशा को वहन किया और इस प्रकार निराशा को जीवन पर हावी नहीं होने दिया कि आत्महत्या का विचार भी आता।

 

क्या आप किसी चिड़चिड़ी राधा की कल्पना कर सकते है? जो कृष्ण को वृंदावन छोड़ने के लिए, उस पर निष्ठा न रखने के लिए तथा उसके प्रति उदासीन रहने के लिए चिड़चिड़ाती हो और उसके प्रति प्रेम को मान्यता दिलवाने या उसके साथ रहने के उपाय ढूंढने के लिए कहती हो।

ऐसा कोई भी आचरण उसके लिए अप्रासंगिक है। प्रारंभ से ही वह ऐसी कोई आशा नहीं पाले रखती अत: कुंठित होकर निराश होने की भी उसके लिए कोई संभावना नहीं है।

मैं उस राधा की कल्पना करना चाहूंगी जो वृंदावन में अकेली रही, बिना कृष्ण के, बिना कृष्ण से मिलन की आशा के।

 

क्या वह दुखी थी? संभवतः नहीं, क्योंकि प्रसन्नता की आशा तो उसने पहले ही छोड़ दी थी। जो लोग प्रसन्नता का जीवन जीते हैं उनके लिए उनका उद्देश्य दुख का कारण बन सकता है, क्योंकि यदि वह उद्देश्य पूरा न हो तो वह दुखी हो जाते हैं पर जिन लोगों का ऐसा कोई लक्ष्य ही न हो और उसे प्राप्त करने की प्रसन्नता भी न हो तो उनका दुख उस बच्चे के दुख की तरह नहीं होता जो चट रोने लगता है।


राधा की जिन बातों से उसकी दुर्बलता तथा कोमलता प्रकट होती प्रतीत होती है, वे वास्तव में उसकी चारित्रिक दृढ़ता तथा धैर्य की उपज हैं

 

पुराणों में राधा देवी बन जाती है। तब से लेकर आज तक कभी भी किसी ने राधा को चरित्रहीन नहीं माना। कृष्ण और राधा के संबंध को तुच्छ दृष्टि से नहीं देखा। यह उचित भी है क्योंकि वे जीवन को सामान्य मोहों के बिना जी गई, समय के पार, रिक्ति में जी गई। देवी हुए बिना ये कैसे संभव है कि कोई नदी में जाकर नहाए, पानी लाए, दूध बेचें और हजारों दूसरे काम करे और ऐसा जताए जैसे इसका उसके लिए कोई अर्थ है, पर उसके भीतर एक मौन आवाज लगातार आती रहे कि ऐसा कुछ नहीं है जिसकी आस हो। और जब हम किसी देवी-देवता की बात करते है तो यह कैसे कह सकते है कि वह प्रसन्न है अथवा दुखी? वह एक साथ दोनों भी हो सकते है और नहीं भी।

 

वह कुछ ऐसा भी हो सकता है जो हमारी समझने की शक्ति से बाहर हो और उसका वर्णन भी हम न कर सकें।

Thursday 10 December 2015

#Haiku नमाज़



खामोश बातें

नि:शब्द पुकार सी

नमाज़ में थी


मनीषा शर्मा~

Tuesday 8 December 2015

#Haiku उम्र

जीवन रहा

प्यार का दरख्त सा

उम्र पथिक


मनीषा शर्मा~

Monday 7 December 2015

Looking at the world through the heart







What is beauty? Fair color, perfect figure and sharp facial features? No... these are merely the upper shell. Then? Bauty is the name of creativity; creation is the true beauty. Beauty means love, something that could bring hope in the lifeless eyes. Beauty is the will do something for that someone. The courage to embrace the world, the heart, and the struggle to feel and to look at the world positively, that is true beauty.

 

The one who loves, is called lovable,

 

Kahlil Gibran says, "Every heart that loves, is beautiful"; his words ring with 101% truth. A heart full of love is bind to happiness. If the heart is happy then the whole world seems to be filled with happiness.

 

Beauty is skin deep,

 

Who does not think that Madhubala and Gayatri Devi are beautiful? However, in my eyes those who are more beautiful than these two are the women breaking stones, covered in sweat. Who struggle through their whole life for their families, but never takes defeat as an option.

 

The face of Mother Teresa, jeweled in wrinkles, is more beautiful than any Miss World or Miss Universe. She was someone who dedicated her whole life to help others. The emaciated Mahatma Gandhi looks incredible, someone who had once started Satyagrah. The petite Anna Hazare looks handsome, someone who was on a fast for five whole days because he could not stand corruption. Now think for a second, do the Greek Gods stands anywhere near these stunning personalities.

 

Beauty is in creation,

 

The famous creation of Leonardo Da Vinci “Mona Lisa”, whose beautiful smile had made the world go head over heels for her. One feels a smile playing across their face when they see the smile of Mona Lisa. This is the beauty.

 

Mirza Ghalib, who was with a white beard, does he not look beautiful to you? He whose astounding Shayari touches the very core of one’s heart. The one with short height and lanky figure, Charlie Chaplin, who had a terrible childhood and yet he made the world laugh in his later life.

 

This is beauty, beauty of heart.

 

When the Molvi told Majnu to write the name of Khuda on his sheet, he wrote 'Laila'. Upon the scolding of Molvi, "Khuda is not 'Laila' but 'Laela' , which means 'Allah' ". Majnu had said, "My lover Laila is my Khuda".

 

"Everything in the Universe is beautiful." Many would agree with this statement of Confucius, but it is not necessary that you would be one of them. Every being has their own beliefs, every being has their own view on it all.

 

For some a sunrise is beautiful and for some a sunset. Some loves the noise whilst some prefer the silence. Some are non-vegetarian and some are pure vegetarian. Some spend their whole life lost in the pages of books, and some loves the book of life. 

 

External beauty is short-lived. It is here today and gone the next. No matter how beautiful someone is, when the time arrives they would be as aged as one would be.

 

However, even if the body in covered in wrinkles, if the heart is beautiful then with age a person's beauty grows. If your heart peaceful then you would look beautiful forever. The gift of inner beauty is that it will be seen in the whole personality. All the same, if the heart is devious then the blackness will be seen on the face.

 

True love is the one of heart to heart. And to reach to someone's heart is not so easy. It is a struggle. Age of the outer shell (beauty) is too short. Those who truly loves someone knows that. Shayar Hastimal Hasti have said an incredible thing, "Jism ki baat nahi thi, unkai dil tak jaana tha... lambi duri tai karnai mai waqt to lagta hai.." ...

Saturday 5 December 2015

#Haiku तारा





आकाश का वो

रात का तारा हूं ,मैं

जलता है जो


मनीषा शर्मा~

Wednesday 2 December 2015

#Haiku दुआ






करूँ मैं दुआ

तुझ से,न खुदा से

बढ़े फ़ासला

मनीषा शर्मा~

Monday 30 November 2015

#Haiku बे-लगाम







बंद किस्मत

हाथों की लकीरों में

बे-लगाम मैं..!

मनीषा शर्मा~

Saturday 28 November 2015

#Haiku ज़िन्दगी







रिश्ते-नातों के

फेंके पासों में फँसी

ज़िन्दगी मेरी ...


मनीषा शर्मा~


Friday 27 November 2015

#Haiku आलसी



प्यार तुम्हारा

आलसी बादल सा

बरसेगा भी?


मनीषा शर्मा~

Wednesday 25 November 2015

#Haiku गाल



भानु से प्यार

गुलाल हुए देखो

संध्या के गाल


मनीषा शर्मा~


Keys-
भानु=सूर्य
संध्या=शाम

Friday 20 November 2015

एक मुकम्मल वतन का ख्वाब(2)





अवश्य पढ़ें- भाग - 1


हर युवा अपने लिए मुकम्मल वतन, आदर्श देश के ख्वाब देखता है। एक ऐसा देश, जहां उसके लिए अवसर हो और उसकी प्रतिभा को पहचाना जाए। एक ऐसा देश, जहां वह अपनी एक जगह, एक पहचान बना पाए।एक ऐसा वतन, जहां सुकून हो, अभिव्यक्ति और अपने हिसाब से जीने की आजादी हो। वह देश के बदलते राजनीतिक दृश्य को मूकदर्शक की तरह न देखें, बल्कि उसमें एक नागरिक की तरह हस्तक्षेप कर सके।

मगर दुर्भाग्य से 'भारत' ऐसा आदर्श वतन अभी नहीं बन सका है।

आज देश में भ्रष्टाचार, आतंकवाद और सांप्रदायिकता इतनी बढ़ चुकी है कि इसके महान अतीत-वृक्ष की जड़ें भी शायद अब हिलाने लगी हो।

भारत ने जितना भी विकास किया है वो बहुत ही असमान, असंगत, असमतल किस्म का है। बड़े राज्य, बड़े शहर विकसित हुए तो अमेरिका या सिगांपुर की होड़ करने लगे, गांव वहीं साठ के दशक पर अटक गये। मोबाइल क्रांति आ गईगांवो में। गांव में कोक और पेप्सी आ गए, मगर गांव तो गांव शहरों में भी साफ पीने का पानी नहीं आता। लड़कियों को पढ़ने की आज़ादी मिली, मगर उनके प्रति अपराध बढ़ गए।

हम कब, कहां, कैसे इस असमान और असंगत विकास के शिकार हुए, उस बिंदु का पता लगाना मुश्किल है।


देश की सबसे बड़ी ताकत उसका अपार मानव संसाधन है। यह संसाधन अपने आप में भारत का सकारात्मक पक्ष है। भारत के हर हिस्से में अगर समान रूप से विकास की लहर पहुंचे तो, गांव के लोग महानगरों की तरफ न भागें। शिक्षा की सुविधा हर जगह एक-सी हो, ताकि देश का हर नागरिक सक्षम हो सके। जिस रोज यह मानव संसाधन शत-प्रतिशत सक्षम और शिक्षित होगा, भारत को महाशक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता।


मुझे अपने सपनों के भारत में और इस भारत के लोगों में एक कमी सदा दिखती है... हम अनुशासन नहीं सीख सके, दूसरों को धकिया कर खुद आगे भागते हैं। जरूरत से ज्यादा छीन लेने की प्रवृति, सरकारी सुविधाओं के प्रति बेमानी भाव ही है, जो हमारे देश को खूबसूरत नहीं रहने देता। हम अपनी रेलों, बसों और सड़कों, स्टेशनों को लगातार गंदा करते जाते हैं।विश्व प्रसिद्ध रहे हमारे पर्यटन स्थल अपना आकर्षण खो रहे हैं। पीकदान और कचरापात्र की जरूरत महसूस करते ही नहीं और हर दिवार या आहाते टॉयलेट बने हुए हैं।

हम अपना सिविल सेंस लगातार खो रहे हैं।

मुझे धार्मिक तौर पर सहिष्णु और आस्था को अपने घर के मंदिर के कोने तक सीमित रखने वाला भारतीय समाज चाहिए। जहां आस्थाएं निजी हों, वे बाजारों या सार्वजनिक स्थलों तक न पहुंचे।

क्या ये समझने की जरूरत नहीं है कि आखिर हम अपनी आस्थाओं का इतना शोर क्यों मचाते हैं?

हम भारतवासी मिलकर पूरी दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातंत्र बनाते हैं, फिर भी कितनी अजीब बात है कि भारत का आम वोटर राजनीति से विमुख रहता है। वह शुतुरमुर्ग बन नेताओं को गाली देता है, मगर वोट देते समय विवेक की जगह जाति, वर्ग और पैसे से प्रभावित होता है। साफ महसूस कर सकती हूं कि हमारी राजनीति अब नैतिकता और समाजोन्मुख नहीं रही। यह वोट-बैंक और जाति-वर्ग के बल पर चलती है।

युवाओं की दखलंदाजी राजनीति में बस उतनी ही है, जितनी हो सकती थी, यानी कुछ युवा नेताओं को यह सौभाग्य मिलता है, जिनके माता-पिता राजनीति में हो।


यूरोप के अधिकाशं। देशों में 'ग्लोबल'होने के साथ-साथ संस्कृति और प्रकृति दोनों को सहेजा है। मैं ऐसे भारत का सपना देखती हूं जो संस्कृति-आधुनिकता का संगम हो।जहां कोई भूखा न सोए, जहां बच्चे काम के बजाए शिक्षा के लिए जाएं, जहां हर इंसान सुरक्षित महसूस कर सके।


सपनों के भारत का बखान कर लेने से तो ऐसा देश नहीं बनेगा, हमें अपने हाथों से इसे वह रूप देना होगा। हमें अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना होगा, हमें सहनशील बनना होगा।

हमें बहुत गहरी संस्कृति और मानवता की जड़ें मिली हैं, इन्हें हम सींचेंगे तभी विकास की नई शाखाएं निकलेगी। भारत का आदर्श और स्वप्निल स्वरूप हमें ही सृजित करना है।

ऐसे में अल्बर्ट आंइस्टाइन की ये पंक्तियां मुझे हमेशा 'आदर्श' को परिभाषित करने की प्रेरणा देती हैं- 'आदर्श सपना होता है, इसे सत्य में बदलने के लिए कर्तव्य व कर्म जरूरी है। जो आदर्श हमेशा मेरे सामने रहे हैं और जिन्होंने मुझे जीवन के आनंद से लबरेज किया है, वे हैं-अच्छाई-सुदंरता और सत्य'।


Wednesday 18 November 2015

नये सपनों का भारत (1)



आज जो भारत हमारे सामने है। इस भारत के कई सपने हैं। कुछ राजनीति की जमीन से उगते हैं तो कुछ समाज के उर्वर प्रदेशों से। कुछ सपने उन आंखों के है, जिन्होंने अतीत देखा है, तो कुछ उनके जिनकी निगाहों में युवा रंग झिलमिलाते हैं। इस एक भारत में बहुत सारे भारत है।और जितने भारत हैं, उतने सपने। इन सपनों का कोई एक रंग नहीं है, हो भी नहीं सकता। पर सपनों से जो आकृति बनती है, उसे तो एक ही होना होगा। इन भांति-भांति के सपनों को मिलकर एक रूप लेना होगा। यही इस भारत की सबसे बड़ी चुनौती है।


...एक भारत यह सपना देखता है कि उसके उजाड़ बंजर पड़े खेतों में बादल घिर आएं, बूंदे बरसे और फसल उगे, दूसरा भारत प्रगति के नए शिखरों को स्वप्न में पास आता महसूस करता है। एक अन्य भारत अपने सपनों को सदियों पुरानी रूढ़ियों के वजन तले दबता देखता है, एक भारत प्राचीन के गौरव को फिर से लौटा लाना चाहता है... अंतहीन हैं भारत के स्वप्न...

...बहुत से सपने गलत भी हैं, बहुत से नाकाफी। कुछ सपने बेबुनियादी और कुछ बेबस...भारत सपनों की देहरी पर खड़ा है... वह कुछ पुराने सपने भूल गया है और कुछ पराये सपनों की गुंजलके भी उसे घेरे हैं।


एक भविष्य उसके सामने है, पर विगत से वह किस भाषा में बात करे,यह वह सीख नहीं पाया है।


यह भारत जो सभ्यता का पालना रहा, उसकी करोड़ों संतानें, भूखी-बिमार-फटेहाल पशुओं से भी बदतर जीवन जीती हैं...

हमें एक समद्ध-सशक्त भारत के साथ, एक अखंड भारत का स्वप्न भी देखना है... सचमुच विचित्र हैं भारत के सपने...

गंगा के मैदानों से लेकर ब्रह्मपुत्र की वादियों तक एक देश सदियों से बनाने की कोशिश कर रहा है।


असंख्य जातियां, समूह, लोग और उनका जीवन जैसे किसी इतिहास की प्रतिक्षा में है। अभी भारत के इस स्वप्न को भाषा नहीं मिली है, कि यह खुद को अभिव्यक्त कर सकें... सतह पर जो दिखता है, गहरायों में उसके रंग और आयाम सब बदलते जाते है।


भारत की सतह पर एक चमक दिखती है, पर भीतर यथार्थ शायद इतना चमकिला नहीं है।भारत की सतह पर भ्रष्ट व्यवस्था और एक उदास राष्ट्रीय जन-जीवन दिखता है, पर यहां भी तह में कुछ और सच्चाइयां जागती मिलेगी। ये सच्चाइयां जनता की आशा, विश्वास और एक महाजाति के अपराजित जीवन को भीतर ही भीतर कोई रूप दे रही हैं।


भारत हारने के लिए नहीं है, इतिहास की यह आश्वस्ति उसके पास है। पर भारत वह होने के लिए भी नहीं है, जो आज वह है।संसार का कोई भी भू-भाग ऐसा नहीं है, जहां पृथ्वी की प्रत्येक मानव नस्ल समाहित हो ,इस कदर एकरूप हुई हो, न ही कोई ऐसा भू-भाग है, जो ज्ञान के इतने सारे रूपों को हजारों साल से रचता रहा हो।

और ऐसा भू-भाग नहीं है, जो अपने आत्म को ही भूल गया हो, या फिर उसकी गलत व्याख्याएं कर आत्ममुग्धता की विस्मृति में खोता गया हो।


आजादी के बाद भारत ने एक महान स्वप्न देखा था-उस सपने की परवाज़ बड़ी थी। हमारे आज के अनगिनत छोटे-छोटे सपने मिलकर जिस दिन फिर से एक बड़े स्वप्न में बदलेंगे, उस दिन से एक नया भारत जन्मेगा।हम फिर नए सपनों का भारत बनाना चाहते हैं तो आज फिर से हमें ज्ञान की ऐसी परंपरा का विकास करना होगा, जिसकी जड़ें अपनी धरती में हों, जो हमारे विचार, व्यवहार और समस्त जीवन में लोकतांत्रिक चेतना को विकसित करे और ऐसा माहौल बनाए हर तरफ, जिससे सच्ची मानवीय स्वतंत्रता की आकांक्षाएं फिर से पनप सकें।


नये सपनों का भारत एक नये आकाश, एक नई जमीन और कुछ नये मौसमों के इंतजार में है और उन्हें अपने ही भीतर कहीं रच भी रहा है...ये मेरा और आपका भारत है।

Sunday 15 November 2015

An award that inspires us


It has not been too long since I started writing. In the time being I have been on this blog, I have posted poems and articles, trying to adapt different forms of writing. And as it seem, my hard work have started paying off. I have been nominated in the Lebister Awards, by a very talented writer and a very active blogger Sunaina Bhatia.

Thank you so much for nominating me Sunaina.. :) To see this nomination and my name among such brilliant writers, I'm now sure that I am writing something that is worth reading.

Here are my answers to the questions :-

 

1)Which of your blog post is closest to your heart?

= Every single post, it is difficult to choose one. But if I have to choose one then it would be, http://athinkingthinker.blogspot.in/2015/09/blog-post_29.html?m=1

 

2)Who is your biggest critic?

= My daughter

 

3)What is happiness?

= Kids jumping around, lots of chocolates, rain and books.

 

4)Which is the most inspiring thing you have read recently?

= Khalil Gibran's biography

 

5)Who is your favorite author/poet/writer?

= Khushwant Singh, Premchand, Gulzar, Khalil Gibran

 

6)When it comes to appreciation, would you prefer a vote for your blog post or a comment?

= Comments

 

7)Walk at the beach or trip to the mall or a luxury cruise – what is your favorite kind of holiday?

=Luxury cruise

 

8)What are your thoughts about my blog or my style of writing?

= I really like your blog, especially your poetry. In a way, your poems reflect life and its ways in it.

 

9)Is it easy to forgive or forget?

= Not for me. If I do so then it would end there, which is why I don't punish either nor do I forgive so that the person thinks about what they have done and feels the guilt.

 

10)Who is your best friend?

= I am.

 

THE RULES

a) Thank the nominator

b) Display the award

c) Nominate 10 more bloggers with 10 new questions.

d) Answer the questions provided by the nominator

e) Notify the nominees

 

I nominate the following bloggers :

 

Jyoti: http://www.jyotidehliwal.com/

 

Rupam Sarma: http://www.rupamsarma.blogspot.in/ 

 

UK: http://www.fashionablefoodz.com/

 

Maglcey: http://mumbai-eyed.blogspot.in/

 

Nabanita Dhar: http://www.nabanitadhar.in/

 

Arun: http://movieretrospect.blogspot.in/

 

Clfarshays: http://blogthepoint.blogspot.in/

 

Ashwath Thrirumalal: http://fromaheartlilhard.blogspot.in/

 

Gurmeet Singh: http://www.myfreshtipz.com/

 

Abhijit Ray: http://occassionalmusings.blogspot.in/

 

And questions for you are :-

 

1- Who is more important in life, a nice teacher or a true friend?

2- Which one of these would you want in your house, a fantastic gym, a library or a big beautiful garden?

3- Are you a better writer or a reader?

4- Which genre do you prefer to write?

5- Who is your favorite author and poet?

6- Is blogging your hobby or passion?

7- Traveling to your dream destination, First edition (autographed by the writer) of your favorite writer's book or a chance to spend 24 hours with Amitabh Bachchan; which one would you choose.

8- Whose criticism would you prefer on your writing style, your family's or your reader's (these both like you as a writer)?

9- What are your like and dislikes in my blog?

10- What do you think life is; a novel or a poem?

Have a great day!

Friday 13 November 2015

#Tanka अक्सर..







अक्सर ही क्यूँ

महक जाते हैं, वो

मुर्झाये फूल

कांटे भी चुभ जाते

जो फूलों में थे नहीं..


मनीषा शर्मा~

Sunday 8 November 2015

#Haiku जोगन~



राधा में मीरा

जोगन सी प्रेयसी

मीरा ही राधा...?


मनीषा शर्मा~

Thursday 5 November 2015

Here, the father wins




There are many mythological stories of Greece in which the son had murdered his father. Uranus was murdered by his son, Cronus, the Titan. Then Cronus was killed by his son Zeus, the Olympian. Uranus was was the God of Gods; after his death Cronus took his place and after the death of Cronus, Zeus took the throne.

The chain of inheritance continues with the death of the father. A father is always suspicious of his son. Sons waged wars against their father for the throne. Sometimes these wars and the thrones were turned unknowingly. The guilt is there after the death of the father, but so is ignorance, and as a result such events occurs from time to time. A son does what his father had done, and in turn his son rejects him too.

In Hindu mythological stories, different events are seen. Here, the father wins and the son succumbs. This defeat of the son is often glorified as Voluntarily. In Ramayana, Ram obeyed the order by given by his father of fourteen year exile. When he returns, his father is dead and he is given the throne. What happened was an ideal rule. But then in Mahabharata, the story of Yayati and Shantanu has been told. Rejecting Yadu by taking the side of Puru, and the great sacrifice by Bhishma, were the cause of the horrifying war on Kurkshaitra. Bhishma sacrificed his right to have a marital life, so that his father could marry Satyavati (his father's lover and a fisher-woman). A son sacrifices himself for his father's happiness, and is glorified as a hero.

In both cases, the sons obeyed their father, but whilst in Ramayana its result was glorified, in Mahabharata the end was tragic. Where was the difference born?

In Ramayana, the son was exiled so that he could fulfill his father's word, and so that the unity of the royal family stays intact. In Mahabharata, the sons suffer so that their fathers could indulge in happiness.

Here the issue is not about being obedient. The point is that is the obedience to maintain the root system or is it to fulfill ones own desire to stay happy. In Ramayana, the main point is Dharam and in Mahabharata its Karma and pleasure.

Saturday 31 October 2015

ज़िन्दगी एक किताब



एक किताब

कुछ अधजले पन्नों की

कुछ गायब पन्नों की

कुछ रंगहीन तस्वीरों की


एक किताब

नई जिल्द की चाह में

फिर से लिखे जाने की चाह में

नए नज़रिए से पढ़े जाने की चाह में

नयी बुक सेल्फ की चाह में

एक नये शब्दकोश की चाह में


एक किताब

जिसमें कुछ आदर्श

जिसमें कुछ जज्बात

बहुत से रहस्य

बहुत सा रोमांच


एक किताब

आज मैंने पढ़ी

एक जिदंगी

आज मैंने पढ़ी।।


मनीषा शर्मा~

Friday 30 October 2015

उम्मीद








बूंद दर बूंद

भाप बन,सागर ख्त्म होता है

बूंद दर बूंद

बारिश बरस,सागर भरती है।।


मनीषा शर्मा~



Tuesday 27 October 2015

The little girl in her



I look around and wonder why do people look at a married woman differently? She might look better dressed, maybe wearing an ornament or two that mark her married. But she's still a girl at heart, sindoor and bindi don't make her a woman. She may be still learning how to run a home, she still might be struggling taking care of not just herself but two and more people, she might not always like to hear 'what does your husband do'. Marriage doesn't suddenly turn a girl into a woman. For that matter having kids doesn't necessarily do the same either. Celebrate who she really is, celebrate the child in her, she may be anyone around you, your friend, your sister, your mother, a total stranger. She's not supposed to be responsible for innumerous things, countless chores, it's just her desire for perfection that she does what she does. This is for every wonderful woman I know. Grow up but take your own sweet time & let the little girl in you live forever. And for all my male friends, cherish her, spoil her and most importantly let her be. She wasn't born to take care of you, it's her heart that makes her do so.

Monday 26 October 2015

#Haiku मनमर्ज़ियां



जिदंगी मेरी

मनमर्ज़ियां मेरी

रूको या जाओ


मनीषा शर्मा~

Friday 23 October 2015

मर्यादापुरुषोत्तम राम या रावण?





मर चुका है रावण का शरीर

स्तब्ध है सारी लंका

सुनसान है किले का परकोटा

कहीं कोई उत्साह नहीं

किसी घर में नहीं जल रहा है दिया

विभीषण के घर को छोड़ कर

 

सागर के किनारे बैठे हैं विजयी राम

विभीषण को लंका का राज्य सौंपते हुए

ताकि सुबह हो सके उनका राज्याभिषेक

बार-बार लक्ष्मण से पूछते हैं

अपने सहयोगियों की कुशल-क्षेम

चरणों के निकट बैठे हैं हनुमान !

 

मन में क्षुब्ध हैं लक्ष्मण

कि राम क्यों नहीं लेने जाते हैं सीता को

अशोक वाटिका से

पर कुछ कह नहीं पाते हैं

 

धीरे-धीरे सिमट जाते हैं सभी काम

हो जाता है विभीषण का राज्याभिषेक

और राम प्रवेश करते हैं लंका में

ठहरते हैं एक उच्च भवन में

 

भेजते हैं हनुमान को अशोक-वाटिका

यह समाचार देने के लिए

कि मारा गया है रावण

और अब लंकाधिपति हैं विभीषण

 

सीता सुनती हैं इस समाचार को

और रहती हैं ख़ामोश

कुछ नहीं कहती

बस निहारती है रास्ता

रावण का वध करते ही

वनवासी राम बन गए हैं सम्राट ?

 

लंका पहुँच कर भी भेजते हैं अपना दूत

नहीं जानना चाहते एक वर्ष कहाँ रही सीता

कैसे रही सीता ?

नयनों से बहती है अश्रुधार

जिसे समझ नहीं पाते हनुमान

कह नहीं पाते वाल्मीकि

 

राम अगर आते तो मैं उन्हें मिलवाती

इन परिचारिकाओं से

जिन्होंने मुझे भयभीत करते हुए भी

स्त्री की पूर्ण गरिमा प्रदान की

वे रावण की अनुचरी तो थीं

पर मेरे लिए माताओं के समान थीं

 

राम अगर आते तो मैं उन्हें मिलवाती

इन अशोक वृक्षों से

इन माधवी लताओं से

जिन्होंने मेरे आँसुओं को

ओस के कणों की तरह सहेजा अपने शरीर पर

पर राम तो अब राजा हैं

वह कैसे आते सीता को लेने ?

 

विभीषण करवाते हैं सीता का शृंगार

और पालकी में बिठा कर पहुँचाते है राम के भवन पर

पालकी में बैठे हुए सीता सोचती है

जनक ने भी तो उसे विदा किया था इसी तरह !

 

वहीं रोक दो पालकी,

गूँजता है राम का स्वर

सीता को पैदल चल कर आने दो मेरे समीप !

ज़मीन पर चलते हुए काँपती है भूमिसुता

क्या देखना चाहते हैं

मर्यादा पुरुषोत्तम, कारावास में रह कर

चलना भी भूल जाती हैं स्त्रियाँ ?

 

अपमान और उपेक्षा के बोझ से दबी सीता

भूल जाती है पति-मिलन का उत्साह

खड़ी हो जाती है किसी युद्ध-बन्दिनी की तरह !

 

कुठाराघात करते हैं राम ---- सीते, कौन होगा वह पुरुष

जो वर्ष भर पर-पुरुष के घर में रही स्त्री को

करेगा स्वीकार ?

मैं तुम्हें मुक्त करता हूँ, तुम चाहे जहाँ जा सकती हो

 

उसने तुम्हें अंक में भर कर उठाया

और मृत्युपर्यंत तुम्हें देख कर जीता रहा

मेरा दायित्व था तुम्हें मुक्त कराना

पर अब नहीं स्वीकार कर सकता तुम्हें पत्नी की तरह !

 

वाल्मीकि के नायक तो राम थे

वे क्यों लिखते सीता का रुदन

और उसकी मनोदशा ?

उन क्षणों में क्या नहीं सोचा होगा सीता ने

कि क्या यह वही पुरुष है

जिसका किया था मैंने स्वयंवर में वरण

क्या यह वही पुरुष है जिसके प्रेम में

मैं छोड़ आई थी अयोध्या का महल

और भटकी थी वन-वन !

 

हाँ, रावण ने उठाया था मुझे गोद में

हाँ, रावण ने किया था मुझसे प्रणय निवेदन

वह राजा था चाहता तो बलात ले जाता अपने रनिवास में

पर रावण पुरुष था,

उसने मेरे स्त्रीत्व का अपमान कभी नहीं किया

भले ही वह मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए इतिहास में !

 

यह सब कहला नहीं सकते थे वाल्मीकि

क्योंकि उन्हें तो रामकथा ही कहनी थी !

 

आगे की कथा आप जानते हैं

सीता ने अग्नि-परीक्षा दी

कवि को कथा समेटने की जल्दी थी

राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौट आए

नगरवासियों ने दीपावली मनाई

जिसमें शहर के धोबी शामिल नहीं हुए

 

आज इस दशहरे की रात

मैं उदास हूँ उस रावण के लिए

जिसकी मर्यादा

किसी मर्यादा पुरुषोत्तम से कम नहीं थी

 

मैं उदास हूँ कवि वाल्मीकि के लिए

जो राम के समक्ष सीता के भाव लिख सके

 

आज इस दशहरे की रात

मैं उदास हूँ स्त्री अस्मिता के लिए

उसकी शाश्वत प्रतीक जानकी के लिए !

 

अज्ञात~