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Friday, 1 May 2015

एक कोरा खत



मन करता है तुझे कुछ लिखुँ

पर लिखुँ भी तो क्या लिखुँ ?

मेरे प्यार का इज़हार,

कसमें-वाद,े

मौसम की बातें

लिख सकती हु यह सब

पर लिखते समय मेरी कलम की स्याही

शुष्क होने लगती है

इसलिये

एक कोरा कागज़ ही रख छोड़ा है

तुम्हारे लिये

तुम्ही कुछ लिख दो ना इस पर


मनीषा शर्मा~

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