अगर तुम
गूंथ दो मेरे बालों को
कविताओं में
मेरे अंगों को कविताओं
में परिवर्तित कर दो
कविताओं के आभुषण पहनाओं मुझे
कविताओं के स्नान पश्चात
मुझे कविता का पर्याय समझ सकें,
अगर
यकीन मानों
बेझिझक,निस्संकोच
बिना मान-मनवार
मैं चल दूगी, तुम्हारे साथ।
मनीषा शर्मा~
लाजबाब मांग कविता के नाम
ReplyDeleteहाहाहाहा :)
Deleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteशुक्रिया राजीव जी
DeletePoem on poem....beautiful...:)
ReplyDeleteThank u Sunaina :) :)
Deletebahut achcha likha hai manisha ji
ReplyDeleteShukriya Saru
Deletewah wah mazaa aa gaya yeh padh kar :)
ReplyDeleteShukriya Alok :) :)
DeleteAap kavita ka paryaay hain, Manisha:)
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना। बेमिसाल लेखन की प्रतीक है आपकी रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया Jamshed ji
Deleteबहुत ही सुंदर रचना। बेमिसाल लेखन की प्रतीक है आपकी रचना।
ReplyDeletesuperb Manisha :-)
ReplyDeleteThank u Archana :-)
Deleteमनीष जी,एक कवियत्री ही कविता से इतना प्यार कर सकती है। बढ़िया प्रस्तुति।
Deleteमनीष जी,एक कवियत्री ही कविता से इतना प्यार कर सकती है। बढ़िया प्रस्तुति।
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया ज्योति जी :)
Deletewaah bahut khoob!
ReplyDeleteThank u Madhusudan :)
Delete..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
बहुत-बहुत शुक्रिया कविता जी :)
DeleteLovely Creation........
ReplyDeleteThank u Vivekanand ji
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