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Saturday, 19 December 2015

अगर तुम







गूंथ दो मेरे बालों को

कविताओं में

मेरे अंगों को कविताओं

में परिवर्तित कर दो

कविताओं के आभुषण पहनाओं मुझे

कविताओं के स्नान पश्चात

मुझे कविता का पर्याय समझ सकें,

अगर

यकीन मानों

बेझिझक,निस्संकोच

बिना मान-मनवार

मैं चल दूगी, तुम्हारे साथ।


मनीषा शर्मा~

25 comments:

  1. लाजबाब मांग कविता के नाम

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    1. शुक्रिया राजीव जी

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  3. bahut achcha likha hai manisha ji

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  4. wah wah mazaa aa gaya yeh padh kar :)

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  5. Aap kavita ka paryaay hain, Manisha:)

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  6. बहुत ही सुंदर रचना। बेमिसाल लेखन की प्रतीक है आपकी रचना।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया Jamshed ji

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  7. बहुत ही सुंदर रचना। बेमिसाल लेखन की प्रतीक है आपकी रचना।

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  8. Replies
    1. मनीष जी,एक कवियत्री ही कविता से इतना प्यार कर सकती है। बढ़िया प्रस्तुति।

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    2. मनीष जी,एक कवियत्री ही कविता से इतना प्यार कर सकती है। बढ़िया प्रस्तुति।

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    3. बहुत बहुत शुक्रिया ज्योति जी :)

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  9. Replies
    1. बहुत-बहुत शुक्रिया कविता जी :)

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