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Thursday 11 February 2016

वे फिर भी कन्याएं ही हैं~(1)


एक पुरानी मान्यता के अनुसार अहिल्या, द्रोपदी, कुंती, तारा और मंदोदरी का स्मरण महापापों को भी नष्ट कर देता है। इन नामों को प्रातः स्मरण में शामिल किया गया है और नामों में ऋषियों, देवताओं, तीर्थों, नारियों और पौराणिक चरित्रों के नाम हैं। उन सभी प्रतीकों से कोई सार्थक संदेश निकलता है, जबकि अहिल्या, द्रोपदी, कुंती आदि किसी के लिए भी आदर्श नहीं रही हैं। इनमें से कोई भी प्रचलित अर्थों में पारिवारिक मूल्यों के प्रति निष्ठावान नहीं रही थी। परिवार में रहते हुए भी इनके एक से ज्यादा पति या दूसरे पुरूषों से संभंध रहे हैं। किसी आधुनिक या स्वछंद जीवन मूल्यों को महत्व देने वाले प्रवाह में इन पात्रों को महत्व दिया जाता तो भी समझ आ सकता था।उस समाज में महत्व मिलना आश्चर्य ही है जहां सीता, सावित्री, अरूंधति, दमयंती और गौरी जैसे चरित्र की पूजा होती हो। पांचों चरित्रों के स्मरण का संदेश देने वाला श्लोक इस प्रकार है-

अहिल्या, द्रौपदी, तारा, कुंती, मंदोदरी तथा।

पंच कन्या स्मरेन्नित्यं महापाS तक नाशनम्।।

(ब्रह्रांड पुराण 3/7/219)

पांचों स्त्रियां विवाहित हैं। इनमें द्रोपदी के तो एक ही समय में पांच पति हैं। कुंती बारी-बारी से सूर्य, इंद्र, अग्नि आदि देवताओं का वरण करती है। अहिल्या के संबंधों को आदर से नहीं देखा जाता। तारा और मंदोदरी भी पतिव्रता की कसौटी पर खरी नहीं मानी गई। फिर भी इन्हें कन्या ही माना जायगा।

कन्या जिसका अर्थ दस वर्ष तक की अविवाहित लड़की है जो अभी रजस्वला नहीं हुई है और यौन सुख तो जिसने जाना ही नहीं है।

अहिल्या आदि के लिए इस संबोधन में कोई व्यंजना नहीं है। जब उन्हें कन्या कहा जा रहा है तो इसका मतलब है कि ये पांचों छोटी बच्चियों की तरह सरल और निर्दोष थी।

पति को परमेश्वर मानने और स्वप्न में भी परपुरुष की कल्पना तक को अधर्म बताने वाले समाज में अहिल्या, द्रोपदी आदि को परम पवित्र घोषित करने का कोई अर्थ है। पांचों को कन्या की तरह निर्मल और पुरूष की छाया तक से अछूता बताने वाला यह श्लोक प्रात: स्मरणीय पदों से अनायास ही नहीं आ गया।

इसके पीछे परम्परा का बल है, जिसमें गहन और सूक्ष्म भाव भरे हुए हैं।

पांचों चरित्र रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में विकसित हुए हैं। इन्हीं ग्रंथों में सीता, अरूंधति, दमयंती, सावित्री, पार्वती और अनुसुइया जैसी सति साध्वी का देवियों की भी वंदना भी की गई है। इसके बावजूद अहिल्या, द्रौपदी आदि का मान कम नहीं किया गया। स्पष्ट है कि न सती साध्वी का आदर्श सर्वोपरि है और न ही निजता इतनी महत्वपूर्ण है कि उसके लिए पारिवारिक मूल्यों की उपेक्षा कर दी जाए। अहिल्या, द्रौपदी आदि ने संबंधों के मामले में स्वयं निर्णय लेते हुए भी परिवार की कहीं उपेक्षा नहीं की थी।

पांचों चरित्र या कन्याओं में तीन अहिल्या, तारा और मंदोदरी का उल्लेख रामायण में आया है। कुंती और द्रौपदी महाभारत की पात्र हैं। यो महाभारत में सत्यवती, देवयानी, उर्वशी आदि महिलाएं भी हैं, परंतु इन्हें कन्या की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। रामायण और महाभारत के इन पांच महिला पात्रों को कन्या कहने का उद्देश्य है। इसे आधुनिक अर्थों में स्त्री स्वातंत्र्य के प्रतिमान की तरह नहीं पारम्परिक या पौराणिक दृष्टि में स्त्री की निजता, शक्ति और स्वतंत्र सत्ता को मान्यता देने के रूप में ही देखा जा सकता है।

पांचों कन्याओं के चरित्र में एक समानता है। इनमें से कोई भी सदमूल्यों के आगे नतमस्तक नहीं।सदमूल्य जिनमें पति को परमेश्वर मानना सिखाया जाता है और स्त्री का धर्म उसके अलावा संतानों या परिवार के दूसरे सदस्यों की सेवाचाकरी तक ही सीमित कर मान लिया जाता है। स्त्री से अपेक्षा की जाती है कि वह इन मूल्यों के संदर्भ में खींची गई लक्ष्मण रेखा को किसी भी स्थिति में नहीं लावे, पति या परिवार के सदस्य भले ही कितने ही पतित और भ्रष्ट हों, हो सकता है स्त्री को पति और परिवार की सीमा में ही जकड़ लेने वाले बंधन बाद में कसे गए हों। तब पंचकन्याओं का स्मरण व संदेश और भी ज्यादा प्रभावी हो गया हैं।

इन चरित्रों के संबंध में ध्यान रखना जरूरी है कि पांचों के विवरण में किसी तथ्य का उल्लेख नहीं है। वे काव्य में आए वर्णन हैं और उन्हें तथ्यों के बजाय रूपक और प्रतिकों के माध्यम से ही समझा जाना चाहिए।

अहिल्या इन पांच कन्याओं में पौराणिक कालचक्र में सबसे पुरानी हैं। भागवत और ब्रह्यापुराण के अनुसार अहिल्या ब्रह्या की पुत्री थी। जन्म या उसे रचते ही ब्रह्या ने अहिल्या को ऋषि गौतम के पास छोड़ दिया था। अहिल्या युवती हुई तो उसका विवाह भी गौतम ऋषि से ही कर दिया गया। इंद्र, अग्नि और स्वंय ब्रह्या भी अहिल्या से विवाह करना चाहते थे। विवाहिता होने के बावजूद कई देवताओं में अहिल्या को पाने की लालसा थी। इंद्र ने तो ऋषि गौतम का वेश धारण करके अहिल्या का संसर्ग पा भी लिया था। ऋषि को जैसे ही पता चला उन्होंने अहिल्या और इंद्र दोंनों को श्राप दिया।

रामायण के आदिकांड में अहिल्या का वर्णन काफी कुछ स्पष्ट है। वह इंद्र के प्रणय प्रभाव का जान-बूझकर स्वागत कर बैठती हैं। पति गौतम के प्रौढ़ और वनवासी व्यक्तित्व की तुलना में इंद्र ज्यादा आकर्षित करते हैं और बाद में वह अपनी स्वीकार का प्रश्रय भी करती हैं।ब्रह्या ने तो अहिल्या को जब ऋषि गौतम के संरक्षण में जब सौंपा था तब वह बालिका थी और जब वह बड़ी हुई तो ऋषि गौतम ने जाने-अनजाने में उसे अपनी पत्नी बनाया। यह संबंध भले ही ब्रह्या की सहमति से बना हो पर अहिल्या इसे स्वीकार नहीं कर पाई ।उसके मन में अन्यथा असहमति पलती रही

और इंद्र के निवेदन के समय विरोध के रूप में प्रकट हुई।इंद्र को स्वीकार करना अहिल्या की अपनी आकांक्षा और ब्रह्या तथा गौतम के प्रति विरोध व्यक्त करने के रूप में भी था।

इन संबधों और घटनाओं के इन उतार-चढ़ावों के बावजूद अहिल्या का अपना शील, नारीत्व और स्वाभिमान अक्षत रहा। इस अक्षत भाव को ही ब्रह्यांड पुराण के गायक ने कन्या के रूप में पहचाना।

कालांतर में राम अहिल्या को वापस प्रतिष्ठा दिलाते हुए-श्राप से पाषाण हुई अहिल्या को श्रापमुक्त कर वापस नारी के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं।

आगे हम अन्य कन्याओं के बारे में जानेगें...

11 comments:

  1. Nice and powerful women. You did not include Gandhari and Sita?

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    1. You are right Abhijit these are powerful women and also self made. There were many such strong women mentioned in the sacred texts, among which were the five I've mentioned and the two you have mentioned, Sita and Gandhari; in the upcoming parts of this article, you will get to know why Sita and Gandhari were not included :)

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  2. Scholarly research and amazing findings...waiting for the next parts!

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    1. Thank you Amit, I'm sure you'll like the upcoming parts too :)

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  3. मनीषा जी, हमारे समाज के नियम अजीबोगरीब है। यहाँ पर कई बार पवित्र को अपवित्र और अपवित्र को पवित्र मान लिया जाता है। ये सभी उदाहरण इसी का द्योतक है। सुन्दर प्रस्तुति।

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    1. बिल्कुल सही कहां आपने ज्योति जी।उम्मीद करती हूं कि आगे के भाग में हम अन्य सच्चाइयों को जान पायेंगे, जो इन महिला पात्रों के बारे में भ्रम है वो भी दूर होगे।

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  4. मनीषा जी, हमारे समाज के नियम अजीबोगरीब है। यहाँ पर कई बार पवित्र को अपवित्र और अपवित्र को पवित्र मान लिया जाता है। ये सभी उदाहरण इसी का द्योतक है। सुन्दर प्रस्तुति।

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