वे फिर भी कन्याएं ही हैं~(2)
पिछले भाग में हमने पढ़ा कि ब्रह्या ने ऋषि गौतम को अबोध बालिका अहिल्या के संरक्षण और पालन-पोषण का दायित्व दिया था। अहिल्या के बड़ी होने पर ऋषि गौतम ने उससे विवाह कर लिया। इंद्र ने गौतम का वेश धर अहिल्या संसर्ग पाया तब गौतम ने क्रोधित होकर अहिल्या को पत्थर होने का श्राप दिया। आगे...
शिला बनी अहिल्या को उसके पुत्र शतानंद ने भी पहचानने से मना कर दिया था।अहिल्या ने भले ही शिला की तरह, जड़वत जीवन जिया हो पर अपना विश्वास और सम्मान खोया नहीं। वह अपने आपको तेजस्विनी, तपस्विनी के रूप में निखारती रही। उनके इसी तेज को आने वाले युग ने फिर से प्रतिष्ठा दी।
रामायण के ही दो पात्र और हैं तारा व मंदोदरी।
तारा बाली की पत्नी थी। बाली ने अपने भाई सुग्रीव का राज्य हड़प लिया था। तारा को वरदान था कि वह विरोधी का आधा बल खेंच सकती थी, जिससे विरोधी पस्त हो जाते। तारा जानती थी कि सुग्रीव श्री राम की शरण में था अत: उसने बाली को बहुत समझाया कि वह युद्ध को टाल दे और सुग्रीव को उसका राज्य लौटा दे मगर अपने अभिमान में बाली उसकी बात नहीं मानता है और राम के हाथों मारा जाता है। बाली की मृत्यु पश्चात तारा अपने पुत्र अंगद के बेहतर भविष्य के लिए सुग्रीव से विवाह कर लेती है।
सत्ता मिलते ही सुग्रीव भी भोग-विलास में रम जाता हैं। सुग्रीव भोग-विलास में यह भुल जाता है कि उसने श्री राम से वादा किया था कि वह माता सीता को ढूँढने में उनकी मदद करेगा। सीता को ढूँढने में होती देरी से क्रोधित होकर लक्षमण किष्किंधा पहुंचते है और सुग्रीव को फटकार लगाते है तब पटरानी तारा आगे आती हैं और क्रोधित लक्षमण समझाती हैं और शांत करती हैं।
तारा ने जिस तरह समय-समय पर अपने पतियों(बाली और सुग्रीव) को सत्परामर्श देती थी और सही रास्ते पर लाने की कोशिश करती थी, वैसे ही विशेषता मंदोदरी के चरित्र में भी थी।
वह अपने पति रावण से बार-बार अनुरोध करती हैं कि वह सीता को वापस जाने दे और राम से समझोता कर ले।
वाल्मीकि ने मंदोदरी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा मगर रामकथा के अन्य स्त्रोतों में उसके स्वत्रंत व्यक्तित्व का उल्लेख विस्तार से मिलता है। कई अवसरों पर तारा बाहुबली रावण को बेबस करती हैं। वह रावण की अवज्ञा तक करती हैं। एक यज्ञ में रावण रक्त से सनी आहुति देना चाहता है तो मंदोदरी उस यज्ञ में उसके साथ बैठने से इंकार कर देती हैं। मंदोदरी के मना करने की वजह से वह अनुष्ठान पूरा नहीं हो पाता है।
अद्भुत रामायण के अनुसार सीता मंदोदरी की पुत्री थी और देवसंसर्ग से गर्भ में आई थी। जन्म के बाद सीता को सुदूर देश भिजवा दिया था। मिथला में जहां वह राजा जनक को एक खेत में मिली।
रामायण के इन तीनों पात्रों में एक समानता है कि इनमें से किसी की भी माता का उल्लेख नहीं मिलता।
तारा के संबंध में इतना ही उल्लेख मिलता हैं कि वह वैद्यराज सुषेण की पुत्री थी। वैद्यराज जिनके उपचार से मुर्छित लक्षमण ठीक हुए थे।
अहिल्या के बारे में कहा जाता है कि उन्हें अयोनिज किया गया था, ब्रह्या ने उनका सृजन किया था।
मंदोदरी की माता का जिक्र नाममात्र का है और वह भी भ्रमित करता है।ब्रह्यांड पुराण के अनुसार वह भय दानव और अप्सरा रंभा की पुत्री थी ।वाल्मीकि ने मंदोदरी की मां का नाम हेमा बताया हैं।मंदोदरी के संबंध में इतने से उल्लेख को छोड़ दे तो वह भी तारा और अहिल्या की तरह मातृहीन ही रह जाती है।
महाभारत की दो पात्र जिनकी गणना चौथी और पांचवीं कन्याओं में किया जाता हैं-कुंती और द्रौपदी भी मातृहीन हैं।
भागवत के अनुसार कुंती शूरसेन की पुत्री और वसुदेव की बहन थी। कुंती का नाम पृथा था और राजा कुंतिभोज ने उसे गोद लिया था,इसलिए उसका नाम कुंती पड़ा।
द्रौपदी का जन्म यज्ञकुंड में आहुति देते समय हुआ था। वह आविर्भूत हुई थी और मातृहीन थी।जारी...
nai drishti ke saath naye tathy parhne mein bahut mazaa aa rahaa hai..
ReplyDeleteनवीनतम जानकारी।
ReplyDeleteशुक्रिया ज्योति जी, उम्मीद करती हूं कि आगे आने वाला इसका अंतिम भाग भी आपको बहुत कुछ नया बतायेगा :)
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Deleteनवीनतम जानकारी।
ReplyDeleteखोजपूर्ण ... नवीन जानकारी ...
ReplyDeleteआपकी लेखनी सच में ऊर्जावान है ...
शुक्रिया Digamber ji
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