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Thursday, 7 May 2015

प्रलय की शुरूआत


ये तो बहुत बुरा हुआ

फुलों की गुफ्तगू को

काटों ने सुन लिया

ये तो गजब हुआ

चाँद-चकोर के प्रेम को

सूरज ने भाप लिया

ये तो कमाल हुआ

शीतल रेत के समन्दर को

गर्म हवा का झोंका उड़ा ले गया

ये तो सितम हुआ

नदियां समुद्र से मिलने से कतरा रही है

उसे खारा बतला रही है

प्रलय की शुरूआत

ऐसे ही होती है


मनीषा शर्मा~

8 comments:

  1. beautiful lines Manisha :-)
    cheers, Archana - www.drishti.co

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  2. bahut sundar likha hai, Manisha:)

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    1. Thank you so much Amit :) Mai likhnai ki koshish karti hu magar jaisi vocabulary aapki hai, mai chahti hu aik din meri bhi utni hi acchi vocabulary ho. Abhi mujhai shabdo par apni pakad itni perfect nahi lagti hai.

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  3. Quite an original thought. Nice!

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    1. Thank u Aneeta, for always giving your time to read my work :)

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  4. This was amazing Manisha!! clap clap clap!!

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