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Friday, 11 September 2015

एक सच एक भरम



तुम्हारा होना

मरूस्थल में एक झरने की

भीगती उम्मीद सा कुछ

पत्थर की दीवार पर

झूमती लताओं-सा कुछ

तपती धूप में छाई

घटाओं-सा कुछ

उलझी पतंग की

फिर से उड़ान की चाह सा कुछ

दीमक लगे ठूंठ में

हरा-भरा होने की तड़प सा कुछ

तुम्हारा होना

एक सच के साथ

एक भरम लिए हुए


मनीषा शर्मा~

16 comments:

  1. aww... badhiya... dil ko choone wala :-)

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    1. Thank you Archana, hamaisha mairi koshisho ko sarahnai kai liya :) Hum jaisai nayai writers ko issai prohtsahan milta hai.. Thank you, once again :)

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  2. tumhara hona....kavita mein naya jeevan bharna!

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  3. बेहतरीन कविता ... :) Loved it a lot.. :)

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  4. Kya likhte ho aap...bahut khoob :)

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  5. भाव... किसी अविस्मरणीय का स्मरण कराता सा कुछ।

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  6. वाह!! बहुत सुन्दर रचना

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