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Monday, 13 April 2015

जीवन चक्र

**घड़ी की सुइयों के आगे बढ़ने से
वक्त बदलता है
सुबह का दोपहर, दोपहर का शाम में बदलना
दिन बदलता है
बचपन का जवानी, जवानी का बुढ़ापे में बदलना
जीवन बदलता है
इन सब पर मेरा कौई बस नहीं
पर, ये सब मुझको भी बदलते हैं
क्या मेरा मुझ पर भी कोई बस नहीं है?

मनीषा शर्मा ~


2 comments:

  1. शुक्रिया ऋषभ, मैं समय निकाल कर अवश्य आपका ब्लॉग पढूंगी।

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  2. आपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा. मेरे हिंदी और अंग्रेजी में दो ब्लॉग हैं. एक मोटीवेशनल तथा दूसरा शिक्षा पर केन्द्रित है. कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आये और मेरा मार्गदर्शन करें.
    https://shilpabhabhi.blogspot.in/

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