Search This Blog

Saturday, 25 April 2015

बंजारन

**किसी दौड़ का हिस्सा नहीं हूं

कुछ पल में खत्म हो वो किस्सा नहीं हूं

रोकती हूं बदहवास से भागते लोगों को

वो रूकते नहीं

हैरान हूं पर गुस्सा नहीं हूं

दौड़ में जो गिरते हैं उठाती हूं उनको

गली बन जाती हूं मगर रास्ता नहीं हूं

जिदंगी मंहगी है जानती हूं

पर मंहगे पिंजरे से डरती हूं

आज़ाद हूं फकीर सी

बंजारन हूं तभी कही रूकती नहीं हूं

कभी रहा है दर्द मेरा हमसफर

अब किसी की चोट पर हँसती नहीं हूं |


मनीषा शर्मा~

2 comments:

  1. कभी रहा है दर्द मेरा हमसफर
    अब किसी की चोट पर हँसती नहीं हूं ...waah! behad khoobsurat, Manisha! Loved it!

    ReplyDelete