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Wednesday, 14 October 2015

मेहमान परिंदे







परिंदों से कैसा परहेज़

चीखों से अच्छी चहचहाहट होती है

गुलेल न चला,उन्हें न उड़ा

उन्हें चहकने दे

उनकी चहचहाहट न दबा

भलें उनके लिए घर के रोशनदान न खोल

छज्जे पर तो बैठने दे

परिंदे तो प्रवासी होते है

प्रवासी भी परिंदे ही होते है।।

मनीषा शर्मा~

 

ये धरती इतनी विशाल है। हर कोई इस छोर से उस छोर तक जाकर देखना चाहता है। 
 हर कोई परिंदा बन जाना चाहता है।
तो चलों उड़ चलों, मैं इस छोर से उड़ूँ तुम उस छोर से।
 

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